________________ श्रीमदुत्तराध्ययनसूत्रम् : अध्ययन 36 ] [ 196 संवच्छरे दुवे / तो संवच्छरद्धं तु, नाइविगिट्ठ तवं चो॥ 253 / / तो संवच्छरद्धं तु, विगिट्ठ तु, तवं चरे। परिमियं चेव थायाम, तम्मि संवच्छरे करे // 254 // कोडीसहिय-मायाम, कटु संवच्छरे मुणी / मासद्ध मासिएणं तु, श्राहारेणं तवं चरे // 255 // कन्दप्प-माभियोगं, किबिसियं मोहमासुरत्तं च। एयायो दुग्गईओ, मरणम्मि विराहिया हुन्ति // 256 // मिच्छा-दंसणरत्ता, सनियाणा हु हिंसगा। इय जे मरन्ति जीवा, तेसिं पुण दुलहा बोही // 257 // सम्महसणरत्ता, अनियाणा सुक्कलेसमोगाढा। इय जे मरन्ति जीवा, सुलहा तेसिं भवे बोही // 25 // मिच्छादसणरत्ता, सनियाणा कराहलेसमोगाढा / इय जे मरन्ति जीवा, तेसिं पुण दुल्लहा बोही // 251 // जिणवयणे अणुरत्ता, जिणवयणं जे करेन्ति भावेणं / अमला असंफिलिट्ठा, ते हुन्ति परित्तसंसारा // 260 // बालमरणाणि बहुसो, अकाममरणाणि चेव बहुयाणि / मरिहन्ति ते वराया, जिणवयणं जे न याणन्ति // 261 // बहुभागमविन्नाणा, समाहिउप्पायगा य गुणगाही। एएण कारणेणं, अरिहा बालोयणं सोउं // 262 // कन्दप्प-कोक्कुईया, तह सीलसहाव-हासविगहाहिं / विम्हाविन्तो य परं, कन्दप्पं भावणं कुणइ // 263 // मन्ताजोगं काउं, भूईकम्मं च जे पउंजन्ति / सायरस-इड्डि-हेर्ड, अभियोगं भाषणं कुणइ // 264 // नाणस्स केवलीणं, धम्मायरियस्स संघ-साहूणं / माई अवगणवाई, किबिसियं भावणं कुणाइ // 265 // अणुबद्ध-रोसपसरो, तह य निमित्तंमि होइ पडिसेवी। एएहि कारणेहिं, आसुरियं भावणं कुणइ // 266 // सत्यग्गहणं विसभक्खणं च, जलणं