________________ भीमदत्तराध्ययनसूत्रम् :: अध्ययनं 21 ] [ 130 याणेइ रूविणिं / पाताए कीलए रम्मे, देवो दोगुन्दगो जहा ॥७॥श्रह अनया कयाई, पासायलोयणे ठियोः। वज्झमराडण-सोभागं, वझ पासइ बझगं // 8 // तं पासिऊण संविग्गो, समुद्दपालो इणमब्बवी / अहोऽसुहाण कम्माणं. निजाणं पावगं इमं // 1 // संबुद्धो सो तहिं भयवं, परमं संवेगमागयो। पापुच्छऽम्मापियरो, पब्बए अणगारियं // 10 // जहिज सग्गन्थ (जहित्तु-जहाय संगं च) महाकिलेसं, महन्तमोहं कसिणं भयाणगं / परियायधम्मं चाभिरोअइज्जा, वयाणि सीलाणि परीसहे य॥ 11 // अहिंस सच्चं च अतेणगं च, तत्तो अ बम्भं अपरिग्गरं च / पडिव. जिया पंच महव्वयाणि, चरिज धम्मं जिगदेसियं विऊ // 12 // सव्वेहिं भूएहिं दयाणुकम्पी(पो) खन्तिक्खमे संजयबम्भयारी / सावजजोगे परिवजयन्तो, चरिज भिक्खू सुसमाहिइन्दिए // 13 // कालेण कालं विहरिज रटे, बलाबलं जाणिय अप्पणो य / सीहो व सद्दे ण न संतसिज्जा, वइजोग सुच्चा न असब्भमाहु // 14 // उवेहमाणो उ परिव्वइजा, पियमप्पियं सव्व तितिक्खइजा / न सब सव्वत्थाभिरोयइजा, न यावि पूयं गरिहं च संजए // 15 // अणेगछन्दा मिह माणवेहिं, जे भावो से पकरेइ भिक्खू / भयभेरवा तत्थ उइन्ति भीमा, दिव्या मणुस्सा अदुवा तिरिच्छा // 16 // परीसहा दुविसहा अणेगे, सीयंति जत्था बहुकायरा नरा / से तत्थ पत्ते न वहिज पंडिए, संगामसीसे इव नागराया // 17 // सीयोसिणा दंसमसगा फासा, पायंका विविहा फुसन्ति देहं / अकुक्कुयो (अककर) तत्थऽहियासइजा, रयाई खेविज पुराकडाई // 18 // पहाय रागं च तहेव दोसं, मोहं च भिक्खू सययं वियक्खणे / मेरुव वारण अकम्पमाणे, परिसहे पायगुत्ते सहिज्जा // 11 // अणुन्नए नावणए महेसी, न. यावि पूयं गरहं च संजए। से उज्जुभावं पडिवज संजए, निबाणमग्गं विरए उवेइ // 20 // अरइरइ सहे पहीणसंथवे, विरए श्रायहिए पहाणवं / परमट्ठपएहिं चिट्ठई, छिन्नसोए