________________ 136 ] [ श्रीमदाममसुधासिन्धुः त्रयोदशमी विभागः उवेइ ठाणं विउलुत्तमं धुवं // 42 // एवुग्गुदनवि महातवोधणे, महामुणी महापइणे महायसे / महानियंठिजमिणं महासुयं, से काहए महया वित्थरेणं // 53 // तुट्ठो अ सेणियो राया, इणमुदाहु कयंजली / अणाहयं जहाभूयं, सुठ्ठ मे उवदंसियं // 54 // तुझ सुलद्धं खु मणुस्सज.म्नं, लाभा सुलद्धा य तुमे महेसी ! / तुम्भे सणाहा य सान्धवा य, जं भे ठिया मग्गि जिणुत्तमाणं // 55 // तंमि नाहो अणाहाणं, सव्वभूयाण संजया / / खामेमि ते महाभाग ! इच्छामि-अणुसासिउं॥५६॥ पुच्छिऊण मए तुम्भ, झाणविग्घोय जं कत्रो / निमन्तिया य भोगेहि, तं सव्वं मरिसेहि मे // 57 // एवं थुणित्ताण स रायसीहो, यणगारसीहं परमाइ भत्तिए / सोरोहो य सपरियणो (सबन्धवो) य, धम्माणुरत्तो विमलेण चेयसा // 58 // ऊससिय-रोमकूवो, काऊण य पयाहिणं / अभिवन्दिऊण सिरसा, अइयायो नराहिवो // 51 // इयरो वि गुणसमिद्धो, तिगुत्तिगुत्तो तिदंडविरो य / विहग इव विप्पमुक्को, विहरइ वसुहं विगयमोहु // 60 // त्ति बेमि // // इति विंशतितममध्ययनम् // 20 // :: // 21 // अथ समुद्रपालीयाख्यमेकविंशमध्ययनम् // चम्पाए पालिए नाम, सावए यासि वाणिए।महावीरस्स भगवो,सीसो सो उ महप्पणो // 1 // निग्मन्ये पावयणे, सावए से विकोविए / पोएण ववहरन्ते, पिहुँडं नगरमागए // 2 // पिहुडे ववहरन्तस्स, वाणियो देइ धूरं / तं ससत्तं पइगिज्झ, सदेसमह पत्थियो॥३॥ श्रह पालियस्स घरणी, समुद्दमि पसवइ / अह दारए तहिं जाए, समुद्दपालित्ति नामए // 4 // खेमेण श्रागए चम्पं, सावए वाणिए घरं / संवडई घरे तस्स, दारए से सुहोइए // 5 // बावत्तरीकलाश्रो श्र, सिक्खिए नीइकोविए / जुव्वणेण य श्रफुगणे (संपरागो), सुरुवे पियदंसणे // 6 // तस्स रूववई भज्ज, पिया