________________ श्रीमदुत्तराध्ययन पूत्रम् :: अध्ययनं 17 ] . [ 125 सीले पगामसो / भुच्चा पिचा सुहं सुबई (वसइ) पारसमणेत्ति वुचई // 3 // यायरिसउज्माएहिं, सुयं विणयं च गाहिए / ते चेत्र खिसई बाले, पावसमणेत्ति वुच्चई // 4 // पायरियउवझायाणं, सम्मं न पडितप्पई / अपडिपू. यए थ द्र, पावसमाणे ति वुचई // 5 // सम्ममाण पाणाणि, बीयाणि हरियाणि य / असंजए संजयमन्नमाणे, पावसमणेति वुचई // 6 // संथारं फलां पीदं, निसिज्जं पायकम्बलं / अप्पमजियमारुहई, पावसमणेत्ति वुच्चइ // 7 // दवदवस चरई, पमत्ते य अभिक्खणं / उल्लंघणे य चराडे य, पावस पणेत्ति वुचई // 8 // पडिलेहइ पमत्तो, अवउज्झइ पायकम्बलं / पडि. लेहा याणाउने, पावसमणेत्ति वुचई // 1 // पडिलेहेइ पमत्ते, से किं.चे हु निसामिया। गुरुं परिभास(व)ए निच्चं, पावसमणेत्ति वुचई // 10 // बहुमाई पमुहरी, थद्धे लुढे अणिग्गहे / असंविभागी अचियने, पावसमणेत्ति वुचई // 11 // विवादं च उदीरेइ, अधम्मे अत्तराहहा / वुग्गहे कलहे रत्ते, पावसमणेत्ति वुचई // 12 // अथिरासणे कुक्कुईए, जत्थ तत्थ निसीइ / अापणंमि अणाउत्ते, पावसमणेत्ति वुच्चई // 13 // ससरक्खपायो सुअइ, सिन्जं न पडिलेहई / संथारए अणाउत्तो, पावसमणोत्ति वुबई // 14 // दुद्रदही-विगईयो, थाहारेइ अभिक्खणं / अरए य तवोकम्मे, पारसमणेत्ति वुच्चई // 15 // अत्यंतमि य सूरम्भि, थाहारेइ अभिक्खणं / चोइयो पडि. चोएइ, पारसमणेत्ति वुचई // 16 // श्राय रेय-परिचाई, परपासंडसेपए। गाणंगणिए दुभूए, पावसमणेत्ति वुच्चई // 17 // सयं गेहं परिचज, परगेहंमि वावरे (ववहरे) / निमित्तेण य ववहरई, पावसमणेत्ति वुच्चई // 18 // सत्राइ पिंडं जे मेइ, निच्छई सामुदाणियं / गिहिनिसिज्जं च वाहेइ, पावसमणेत्ति वुचई // 11 // एयारिसे पंचकुसीलऽसंबुडे, रूवंधरे मुणिपवराण हिट्ठिमे / अयंसि लोए विममेव गरहिए, न से इहं नेव परत्थलोए // 20 // जे व जर एए सदा उ दोले, से सुबए होइ मुणीण मज्झे / अयंति लोए