________________ भीमदुत्तराभ्ययनक्षत्रम् :: अध्ययनं 15 ] [ 11 कामेस्, भविस्सामो जहा इमे // 45 // सामिसं कुललं दिस्सा, बज्ममाणं निरामिसं / ग्रामिसं सव्वमुज्झित्ता, विहरिस्सामो निरामिसा // 46 // गिद्धोवमे य नच्चाणं, कामे संसारवडणे / उरगो सुवराणपासेव्व, सङ्कमाणो तणु चरे // 47 // नागुब्ब बन्वणं छित्ता, अपणो वसहिं वए / एवं पत्थं (इति एत्थं) महाराय !, उसुयारि ति सुयं // 48 // चइत्ता विउलं रटुं (रज्ज), कामभोगे य दुच्चए / निविसया निरामिसा, निन्नेहा निप्परिगहा // 4 // सम्म धम्मं वियाणित्ता, चिच्चा कामगुणे वरे। तवं पगिज्मऽहक्खायं, घोरं घोरपरकम्मा // 50 // एवं ते कमसो बुद्धा, सब्वे धम्मपरायणा (धम्मपरंपरा)। जम्ममच्चुभउबिग्गा, दुक्खस्सन्तगवेसिणो // 51 // सालणे विगयमोहाणं, पुब्धि भावणभाविया / अचिरेणेव कालेण, दुक्खस्सन्तमुवागया // 52 / / राया सह देवीए, माहणो य पुरोहियो / माहणी दारगा चेव, सव्वे ते परिनिवुडि // 53 // त्ति बेमि // // इति चतुर्दशममध्ययनम् // 14 // // 15 // अथ सभिक्षुनामकं पंचदशममध्ययनम्॥ मोणं चरिस्सामि समिच धम्म, सहिए उज्जुकडे नियाणचिन्ने / संथवं जहिज अकामकामे, अन्नायएसी परिपए स भिक्खू / / 1 / / रायोवरयं चरेज लाढे, विरए वेयवियाऽऽयरविखए / पन्ने अभिभूय सव्वदंसी, जे कम्हि वि न मुच्छिए स भिक्खू // 2 // अक्कोसवहं विइत्तु धीरे, मुणी चरे लाढे निञ्चमायगुत्ते / अव्वग्गमणे असंपहि?, जो कसिणं अहियासए स भिवखू // 3 // पंतं सयणासणं भइत्ता, सीउगह विविहं च दंसमसगं / अव्वग्गमणे असंपहि8, जो कसिणं अहियासए स भिक्खू // 4 // नो सकिइमिच्छई न पूयं, नोविय वन्दणगं कुयो पसंसं ? / से संजए सुब्बए तवस्सी, सहिए थायगवेसए स भिक्खू // 5 // जेण पुण जहाइ जीवियं, मोहं वा कसिणं नियच्छई / नरनारिं पजहे सया तवस्सी, न य कोऊहलं