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________________ 118' [ श्रीमदागमसुधासिन्धु: / / त्रय दशमी विमागः उवेइ स भिक्खू // 6 // छिन्नं सरं भोममन्तलिक्वं, सुमिणं लक्खणं दराडं वत्थुविज्ज / अङ्गवियारं सरस्स विजयं, जो विजाहिं न जीवई स भिक्खू // 7 // मंतं मूलं विविहं विजचिन्तं, वमण-विरेयण-धूमणेत्तसिणाणं / बाउरे सरणं तिगिच्छियं च, तं परिन्नाय परिव्वए स भिक्खू // 8 // खत्तियगण उग्गरायपुत्ता, माहण भोइ य विविहा य सिप्पिणो (सिप्पिणोऽन्ने)। नो तेसिं वयइ सिलोगपूयं, तं परिन्नाय परिव्वए स भिक्खू // 1 // गिहिणो जे पव्वइएण दिट्ठा, अप्पवइएण व संथुया हविजा / तेसिं इहलोइयफलट्ठा, जो संथवं न करेइ स भिक्खू // 10 // सयणासणपाणभोयणं, विविहं खाइमसाइमं परेसि / अदए पडिसेहिये नियराठे, जे तत्थ न परोसई स भिवखू // 11 // जं किंचि श्राहारपाणं विविहं, खाइमसाइमं परेसिं लद्धं / जो तं तिविहेण नाणुकम्पे, मणवयकायसु-संवुडे स भिक्खू // 12 // श्रायामगं चेव जत्रोदणं च, सीयं सोवीरं जवोदगं च / नो हीलए पिराडं नीरसं तु, पंतकुलाणि परिव्वए स भिक्खू // 13 // सदा विविहा- भवंति लोए, दिवा माणुसया तहा तिरिछा / भीमा भाभेरवा उराला, जो सोचा न बिहिजई स भिक्खू // 14 // वादं विविहं समिञ्च लोए. सहिए खेयाणुगए य कोवियप्पा / पन्ने अभिभूय सव्वदंसी, उवसंते अवहेडए स भिक्खू // 15 // असिप्पजीवी अगिहे अमित्ते, जिइंदियो सव्वयो विप्पमुक्के / अणुकसाई लहुअप्प मक्खी, चिच्चा गिहं एगचरे स मिक्खु // 16 // त्ति बेमि // // इति पञ्चदशममध्ययनम् // 15 // // 16 // अथ ब्रह्मचर्यसमाधिनामकं षोडशमध्ययनम् // __सुयं मे, पाउसं ! तेणं भगवया एवमक्खायं-इह खलु थेरेहिं भगवन्तेहिं दस बम्भवेरसमाहिठाणा पन्नत्ता, जे भिक्खू सोचा निसम्म संजमबहुले संवरबहुले समाहिबहुले गुत्ते गुत्तिन्दिए गुत्तबम्भयारी सया अप्पमत्ते विहरिजा। कयरे खलु तेथेरेहिं भगवन्तहिं दस बम्भचेरसमाहिठाणा पन्नत्ता, जे भिक्खू
SR No.004374
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1975
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_pindniryukti, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size21 MB
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