________________ 132 [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः त्रयोदशमी विमार्गः पियरं, अणुमाणित्ताण बहुविहं / ममत्तं छिन्दई ताहे, महानागुब्ब कंचुयं // 86 // इडी वित्तं च मित्ते य, पुत्तदारं च नायो / रेणुयं व पडे लग्गं, निझुणित्ताण निग्गयो // 87 // पंचमहव्वयजुत्तो, पंचसमिश्रो तिगुत्तिगुत्तो य / सन्भिन्तरवाहिरिए, तवोकम्ममि उज्जुयो॥ 88 // निम्ममो निरहंकारो, निरसंगो चत्तगारयो / समो य सव्वभूएसु, तसेसु थावरेसु य // 86 // लाभालाभे सुहे दुवखे, जीविए मरणे तहा / समो निन्दापसंसासु, तहा माणावमाणो // १०॥गारवेसु कसाएसु, दंडसल्लभएसु य / नियत्तो हाससोगायो, अनियाणो अबन्धणो // 11 // अणिस्सियो इह लोए, परलोए अणिस्सियो / वासीचन्दणकप्पो य, असणे अणसणे तहा // 12 // अप्पसस्थेहिं दाहेिं, सब यो पिहियासवो। अझप्पज्झाण-जोगेहिं, पसत्थदमसासणो // 13 // एवं नाणेण चरणेण, दंसणेण तवेण य / भावणाहिं विसुद्धाहिं, सम्मं भावित्तु अप्पयं // 14 // बहुयाणि उ वासाणि, सामन्नमणुपालिया। मासिएण उ भत्तेणं, सिद्धिं पत्तो अणुत्तरं // 15 // एवं करन्ति संबुद्धा, पण्डिया पवियक्खणा / विणिपट्टन्ति भोगेस, मियापुत्ते जहामिसी // 16 // महप्पभावस्स महाजसस्स, मियाइपुत्तस्स निसम्म भासियं / तवप्पहाणं चरियं च उत्तम, गइप्पहाणं च तिलोअविस्सुतं // 17 // वियाणिया दुक्खविवडणं धणं, ममत्तांधं च महाभयावहं / सुवावहं धम्मधुरं अणुतरं, धारेह निव्वाणगुणावहं महं // 18 // त्ति बेमि // // इति एकोनविंशतितममध्ययनम् // 19 // // 20 // अथ महानिर्ग्रन्थीयाख्यं विंशतितममध्ययनम् // सिद्धाण नमो किच्चा, संजयाणं च भावो / अत्थधम्मग(व)ई तच्चं, अणुसिद्धिं सुणेह मे // 1 // पभूयरयणो राया, सेणियो मगहाहियो। विहारजत्तं निजायो मण्डिकुच्छिसि चेइए // 2 // नाणादुम-लयाइराणं, नाणापविख-निसेवियं / नाणाकुसुम-संछन्नं, उज्जाणं नंदगोवमं // 3 //