________________ श्रीमदत्तराज्यपनस्त्रम् : अध्ययनं 2] . [ 135 तत्थ सो पासए साहुँ, संजयं सुसमाहियं / निसन्नं रुक्खमूलंमि, सुकुमालं सुहोइयं // 4 // तस्स रूवं तु पासित्ता, राइणो तम्मि संजए। अच्चंतपरमो श्रासी, अउलो स्वविम्हो // 5 // अहो वनो अहो रूवं, अहो अजस्स सोमया। ग्रहो खंती अहो मुत्ती, अहो भोगे अमंगया // 6 // तस्स पाए उ वन्दित्ता, काऊण य पयाहिणं / नाइदूर-मणासन्ने, पंजली पडिपुच्छई // 7 // तरुणोऽसि अजो ! पवइयो, भोगकालम्मि संजया ! / उवट्ठि(हि)ोऽसि सामराणे, एअमट्ठ सुणेमु ता // 8 // अणाहो मि महारायं !, नाहो मझ न विजई / अणुकम्पयं सुहिं वावि, कंची नाहि तुमे(नाभिसमे.) महं // 1 // ततो सो पहसियो राया, सेणियो मगहाहिवो / एवं ते इडिमंतस्स, कहं नाहो न विजई ? // 10 // होमि नाहो भयंताणं, भोगे भुजाहि संजया!। मित्तनाईपरिवुडो, माणुस्सं खु सुदुल्लहं // 11 // अप्पणावि अणाहोसि, सेणिया ! मगहाहिवा / अप्पणा अणाहो संतो, कह(स्स) नाहो भविस्ससि ? // 12 // एवं वुत्तो नरिंदो सो, सुसंभंतो सुविम्हिो / वयणं अस्सुयपुव्वं, साहुणा विम्हयं नियो॥ 13 // अस्सा हत्थी मणुस्सा मे, पुरं अंतेउरं च मे / भुंजामि माणुसे भोप, प्राणा इस्सरियं च मे // 14 // परिसे संपयग्गंमि, सव्वकाम-समप्पियो / कहं अणाहो भवई ? मा हु भंते ! मुसं वए // 15 // न तुमं जाणे अणाहस्स प्रत्थं पुच्छ (पोत्थं) च पत्थिवा ! / जहा श्रणाहो भवई, सणाहो वा नराहिव ! // 16 // सुणेहि मे महारायं !, अव्वक्खित्तेण चेयसा / जहा श्रणाहो भवई, जहा मेत्र पवत्तियं // 17 // कोसंबीनाम नयरी, पुराण-पुरभेयिणी / तत्थ श्रासी पिया मझ, पभूयधणसंचयो / / 18 / / पढमे वए महाराय ! अउला मे अच्छिवेयणा / बहुत्था ति(वि)उलो दाहो, सव्वगत्तेसु (सब्गेसु) पत्थिवा ! // 11 // सत्थं जहा परमतिक्खं, सरीरविवरंतरे। पविसिज (सरीरबीयअंतरे / श्रावेलिज) अरी कुद्धो, एवं मे अच्छिवेयणा // 20 // तियं मे अंतरिच्छं च, उत्तिमंगं च