________________ श्रीपिण्डनिय कि] .. ससिहागा सावग पवयण साहम्मिया न लिङ्गणालिङ्गण उ साहम्मी नो पवरण निह्नगा सव्वे // 146 ॥विसरिस-दसणजुत्ता पवयण-साहम्मिया न दंसणयो। तित्थगरा पत्तेया नो पवयणदंस-साहम्मी॥ 147 ॥नाणचरित्ता एवं नायव्या होते पवरणे गं तु / पवरणयो साहम्मी नाभिग्गह सावगा जइणो // 14 // साहमऽभिग्गहेणं नो पवयण निराह तित्थ पत्तेया / एवं पवयणभावण एत्तो सेमाण वोच्छामि // 141 // लिंगाईहिवि एवं एक्केकेणं तु उवरिमा नेया। जेऽनन्ने उवरिल्ला ते मोत्तु सेसए एवं // 150 // लिङ्गण उ साहम्मी न दंसणे वीसुदंसि जइ निराहा / पत्तेयबुद्ध तित्थंकर। य बीयंमि भंगमि // 151 // लिंगेण उ नाभिग्गह अणभिग्गह वीसुऽभिग्गहा चेव / जइ साबग बीयभंग पत्तेयबुहा य तित्थयरा // 152 // एवं लिङ्गण भावण, दसणनाणे य पदम भंगो उ / जइ सावग वीसुनाणी एवं चिय बिइयभंगोवि // 153 // दमणचरणे पढमो साधग जइणो य बीयभंगो उ / जइणो विसरिसदंसी दंसे य अभिग्गहे वोच्छं // 154 // सावग जइ वीस भिग्गह पढमो बीयो य भावणा चेवं / नाणेणऽवि नेज्जेवं एत्तो चरणेण वोच्छामि // 155 / / जइणो वीसाभिग्गह पढमो विय निराहसावगजशो उ (ईणो)। एवं तु भावणासुगवे वोच्छं दोगहंतिमाणित्तो // 156 // जइणो सावग निरहब पदमे विइए य हुँति भंगे य। केवलनाणे तित्थंकरस्स नो कप्पइ कयं तु // 157|| पत्तेयबुद्ध निराहव उवासए केवलीवि यासज / खइयाइए य भावे पडुच्च भंगे उ जोएजा // 158 // जत्थ उ तइयो भंगो तत्थ न कप्पं तु सेसए भयणा / तित्थंकर केवलिणो जह कप्पं नो य सेसाणं // 151 // किं तं ग्राहाकम्मति पुच्छिए तस्सरूव-कहणत्थं / संभव-पदरिसणत्थं च तस्स असणाइयं भणइ // 160 // सालीमाइ अवडे फलाइ सुठाइ साइमं होइ / तस्स कडनिट्ठियमी सुद्धमसुद्धे य चत्तारि // 261 // कोदवरालगगामे वतही रमणिज भिक्खसज्झाए / खेतपडिलेहसंजय साक्यपुच्छु