________________ श्रीमदुत्तराध्ययनसूत्रम् / अध्ययनं 5) न इमं सवेसु भिक्खूमु, न इमं सव्वेसुऽगारिसु / नाणासीला श्र गारस्था, विसमसीला य भिक्खुणो // 11 // सन्ति एगेहिं भिक्खुहिं, गारत्था संजमुत्तरा / गारत्थेहि य सव्वेहि, साहवो संजमुत्तरा // 20 // चीराजिणं नगिणिणं, जडीसंघाडिमुण्डिणं / एयाई पि न तायन्ति, दुस्सीलं पडियागयं // 21 // पिराडोलएव दुरसीले, नरगाश्रो न मुच्चई / भिक्खाए वा गिहत्थे वा, सुव्वए कम्मई दिवं // 22 // अागारिसामाइयङ्गाणि, सड्ढी कारण फोसए। पोसहं दुहयो पक्खं, एगरायं न हावए // 23 // एवं सिक्खासमावन्ने, गिहवासे वि सुव्वए / मुच्चइ छविपव्वायो, गच्छे जक्खसलोगयं // 24 // अह जे संवुडे भिक्खू, दोगहमेग(मन्न)यरे सिया / सव्वदुक्खपहीणे वा, देवे वावि महिड्ढिए // 25 // उत्तराई विमोहाई, जुइमन्ताऽणुपुव्वसो / समाइराणाइं जक्खेहिं, बारासाई जसंसिणो // 26 // दीहाउया इढि(दित्ति) मन्ता, समिद्धा कामरूविणो / बहुणोववन्नसंकासा, भुजो अच्चिमालिप्पभा // 27 // ताणि ठाणाणि गच्छन्ति, सिक्खित्ता संजमं तवं / भिक्खाए वा गिहित्थे वा, जे सन्ति पडिनिव्वुडा // 28 // तेसिं सोचा सपुजाणं, संजयाण वुसीमयो। न संतसन्ति मरणन्ते सीलवन्तो बहुस्सुया // 21 // तुलिया विसेसमादाय, दयाधम्मस्स खन्तिए। विप्पसीएज मेहावी, तहाभूएण अप्पणा // 30 // तो काले अभिप्पेए, सड्ढी तालिसमन्तिए / विणइज्ज लोम हरिसं, भेयं देहम्स कंखए॥ 31 // ग्रह कालम्मि संपत्ते आघायाय समुस्सयं सकाममरणं मरइ, तिराह-मन्नयरं मुणि // 32 // त्ति बेमि // // इति पञ्चममध्ययनम् // 5 // // 6 // अथ क्षुल्लनिग्रन्थीयं षष्ठमध्ययनम् // जीवन्तविजा पुरिसा, सव्वे ते दुक्खसंभवा / लुप्पन्ति बहुसो मूदा संसारंमि अणन्तए // 1 // समिक्स पण्डिए तम्हा (तम्हा समिक्ख मेहावी), पासजाईपहे बहू / अप्पणा (अत्तट्टा) सच्चमेसेजा, मेत्तिं भूएसु कप्पए // 2 //