________________ मीपिण्डनियुक्तिः ]:उ अदो अपाणंतो // 516 // भिक्खामित्ते अवियालणा उ बालेण दिजाणं मे / संदितु वा गहणं अबहुय वियालणेऽणुन्ना // 517 // थेर पहु थरथरते धरिए अन्नेण दढसरीरे वा। अवत्त-मत्तसडढे अभिले वा असागरिए // 518 // सुइभद्दग-दित्ताई दढग्गहे वेविए जरंमि सिवे / अन्नधरियं तु सड्ढो देयंघोऽन्नेण वा धरिए / / 516 // मंडल-पसूति-कुट्ठी:सागरिए पाउयागए अयले / कमबद्धे सवियारे इयरे वि? असागरिए // 600 // पंग अप्पडिसेवी वेला थणजीवि इयर सव्वंपि / उक्खित्त-मणावाए न किंचि लग्गं ठवंतीए // 601 // पीसंती निप्पि? फासु वा घुसुलणे असं उत्तं / कत्तणि असंखचुन्नं चुन्नं वा जा चोक्खलिणी // 602 // उब्धट्टणि संपत्तेण वावि गट्ठीलए न घट्टइ। पिंजण-पमद्दणसु य पच्छाकम्मं जहा नात्थ // 603 // सेसे पु य पडिबक्खो न संभवइ का गहणमाईसु / पडिवक्खस्स अभावे नियमा उ भवे तयग्गहणं // 604 // सचित्ते अचते मीसग उम्मीसगंसि चउभंगो। पाइतिए पडिसेहो चरिमे भंग मे भयणा उ॥ 605 // जह चेव य संजोगा कायाणं हेट्टयो य साहरणे / तह चेव य उम्मीसे होइ विसेसो इमो तत्थ // 606 // दायब्वमदायव्वं च दोऽवि दब्बाइं देइ मीसेउं / योयणकुसुणाईणं साहरण तयन्नहिं बोङ॥ 607 // तंपि य सुक्के सुवकं भंगा चत्तारि जह उ साहरणे / अप्पबहुएऽवि चउरो तहेव पाइन्नऽणाइन्ने // 608 // अपरिणयपि य दुविहं दब्बे भावे य दुविहमेक्केवकं / दव्बंमि होइ छवकं भावंमि य होइ सझिलगा // 601 // जीवतंमि अविगए अपरिणयं परिणयं गए जीवे / दिट्ठतो दुद्धदही इय अपरिणय परिणयं तं च // 610 // दुगमाई सामन्ने जइ परिणमई उ तत्थ एगस्स / देमित्ति न सेसाणं अपरिणयं भावो एयं॥६११॥ एगेण वावि एसिं मणंमि परिणमियं न इयरेणं / तंपि हु होइ अगिमं सन्झिलगा सामि साहू वा // 612 // घेत्तव्य-मलेवकडं लेवकडे मा हु