________________ 18 ] / श्रीमदागमसुधासिन्धुः त्रयोदशमो विभागः / // 11 // तवं कुञ्चइ मेहावी, पणीयं वजए रसं / मजप्पमाय-विरो, तवस्सी अइउक्कसो // 42 // तस्स पस्सह कलाणं, अणेगसाहपूइयं / विउलं अत्थसंजुत्तं, कित्तइस्सं सुणेह मे // 43 // एवं तु सगुणप्पेही, श्रगुणाणं च विवजयो / तारिसो मरणंतेवि, धाराहेइ अ संवरं // 44 // पायरिए वाराहेइ समणे श्रावि तारिसो। गिहत्थावि णं पूयंति, जण जाणंति तारिसं // 45 // तब-तेणे वय-तेणे, स्वतेणे अजे नरे / बायार-भावतेणे य, कुबई देवकिविसं // 46 // लगवि देवत्तं, उववन्नो देवकिदिवसे / तत्थावि से न याणाइ, किं मे किच्चा इमं फलं // 17 // तत्तोवि से चइत्ताणं, लम्भिही एलमूययं / नरयं तिरिक्खजोणिं वा बोहि जत्थ सुदुल्लहा // 48 // एयं च दोसं दवणं, नायपुत्तेण भासिय / अणुमायपि मेहावी, मायामोसं विवजए // 41 // सिक्खिऊण भिवखेसण सोहिं, संजयाण बुद्धाण सगासे / तत्थ भिक्षु सुप्पणिहि-इंदिए, तिव्वलज-गुणवं विहरिजिसि // 50 // त्ति बेमि / // इति पञ्चमध्ययने द्वितीय उद्देशकः / / 5.2 // ॥इति पञ्चममध्ययनम् / / 2 // // 6 // अथ श्रीमहाचार-कथा-जामकाध्ययनम् // नाण सण-संपन्न, संजमे अ तवे रयं / गणिमागम-संपन्नं, उज्जाणम्मि समोसढं // 1 // रायाणो राचमबा य, माहणा अदुव खत्तिया। पुच्छंति निहुअप्पाणो, कहं मे आयारगोयरो // 2 // तेसिं सो निहुयो दंतो, सव्वभूअ-सुहावहो / सिक्खाए सुप्समाउत्तो, बायक्खइ विखणो // 3 // हंदि धम्मस्थकामाणं, निग्गंथाणं सुणेह मे। बायारगोअरं भीम, सरलं दुरहिट्ठियं // 4 // ननत्थ एरिसं वुत्तं, जं लोए परमदुचरं / विउलट्ठाणभाइस्त, न भूयं न भविस्सइ // 5 // सखुड्डुगवियत्ताणं, वाहियाणं च.जे गुणा / अखंडफुडिया कायव्वा, तं सुणेह जहा तहा // 6 // दस अट्ठ य ठाणाई,