________________ श्रीमद्दशकालिक-सूत्रम् अध्ययनं 5 ] (17 च, मूलगं मूनगतियं / ग्रामं असत्थारिणयं, मणसावि न पत्थए // 23 // तहेब फलमंथूणि, बीअमंथूणि जाणिय / बिहेलगं पियालं च, श्रामगं परिवजए // 24 / / समुयाणं चरे भिक्खू, कुलमुचावयं सया / नीयं कुलमइकम्म, अयोसदं नाभिधारए // 25 // यदीणो वित्तिमेसिज्जा, न विसीइज पंडिए / अमुच्छियो भोगणंमि, मायराणे एसणारए // 26 // बहुँ परघरे यत्यि, विविहं खाइमं साइमं / न तत्थ पंडियो कुप्पे, इच्छा दिज परो न वा // 27 // सयणा सणवत्थं वा, भत्तं पाणं व संजए। अदितस्स न कुपिजा, . पच्चरखे वि यदी यो // 28 // इथियं पुरिसं वावि, डहरं वा महल्लगं। वंदमाणं न जाइजा, नो अण फरुसं वए // 26 // जे नवंदे न से कुप्पे, बंदियो न ममुकसे / एव-मन्नेसमाणस्स, सामराण-मणुचिट्ठइ // 30 // सिया एगइयो लद्रु, लोभेण विणिगृहइ / मामेयं दाइयं संतं, दळूणं सयमायए // 31 // यत्तट्टा गुरुयो लुद्धो, बहुपावं पकुवइ / दुत्तोसयो यसो होइ, निव्वाणं च न गच्छ। // 32 // सिया एगइयो लधु, विविहं पाणभोगणं / भदगं भदगं भुच्चा, विवन्नं विरस-माहरे // 33 // जाणंतु ता इमे समणा, पाययट्ठी ययं मुणी / संतुट्टो सेवए पंतं, लूहवित्ती सुतोसयो // 34 // पूयणट्ठा जसोकामी, माणसम्माणकामए / बहुँ पसवई पावं, मायास-लं च कुरई // 35 // सुरं वा मेरगं वावि, अन्नं वा मजगं रसं / ससवखं न पिये भिक्खू, जसं सारषखमप्पणो // 36 // पियए एगयो तेणो, न मे कोइ वियाएइ / तस्स पस्सह दोसाई, नियडिं च सुणेह मे // 37 // वडई सुडिया तस्स, मागामोसं च भिक्खुणो / अयसो घ अनिव्याणं, सपयं च असाहुया // 38 // निच्चुधिग्गो जहा तेणो, अत्तकम्मेहिं दुम्मई / तारिसो मरणंतेऽवि, न धाराहेइ संवरं // 31 // प्रायरिए नाराहेइ, समणे प्रावि तारिसे / गिहत्यावि ण गरिहंति, जेण जाणंति तारिसं // 40 // एवं तु अगुणप्पेही, गुणाणं च विवजयो / तारिसो मरणंतेऽवि, ण बाराहेइ संवरं