________________ [ श्रीमदागमसुधासिन्धु : त्रयोदशमो विभागः समायरे // 4 // काले चरसि भिक्खू, कालं न पडिलेहसि / अप्पाणं च किलामेसि, संनिवेसं च गरिहसि // 5 // सइ काले चरे भिक्खू, कुजा पुरिसकारियं / अलाभुत्ति न सोएजा, तवृत्ति अहियासए // 6 // तहेवु. चावया पाणा, भत्तट्ठाए समागया / तं उज्जुग्रं न गच्छिजा, जयमेव पर. कमे // 7 // गोबरग्गपविट्ठो अ, न निसीइज कत्थई / कहं च न पबंधिज्जा, चिट्टित्ताण व संजए // 8 // अगलं फलिहं दारं, कवाडं वावि संजए। अवलंबिया न चिट्ठिजा, गोबरग्गयो मुणी // 1 // समणं माहणं वावि, किविणं वा वणीमगं / उवसंकमंतं भत्तट्टा, पाणट्ठाए व संजए॥ 10 // तं अइक्कमित्तु न पविसे, नवि चिट्ठ चक्खुगोयरे। एगंतमवक्कमित्ता, तत्थ चिट्ठिज संजए // 11 // वणीमगरस वा तस्स, दायगस्सुभयस्स वा। अप्पत्तियं सिया हुजा, लहुत्तं पवयणस्म वा // 12 // पडिसेहिए व दिन्ने वा, तयो तम्मि नियत्तिए / उवसंकमिज भत्तट्ठा, पाणट्टाए व संजए / / 13 // उप्पलं पउमं वावि, कुमुग्रं वा मगदंतियं / अन्नं वा पुष्फसचित्तं, तं च संलुं विया दए // 14 // तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अप्पियं / दितियं पडियाइरखे, न मे कप्पइ तारिसं // 15 // उप्पलं उपमं वावि, कुमुग्रं वा मगदतियं / अन्नं वा पुप्फ-सचित्तं, तं च संमदिया दए // 16 // तं भवे भत्तपाण तु, संजयाण अकप्पियं / दितिय पडियाइवखे, न मे कप्पइ तारिसं / / 17 // सालुयं वा विरालियं, कुमुयं उपलनालियं / मुणालियं सासवनालियं, उच्छुखंडं अनिव्वुडं // 18 // तरुणगं वा पवालं, वखस्स तणगस्स वा। अन्नस्स वावि हरिप्रस्स, श्रामगं परिवजए // 11 // तरुणियं वा छिवाडिं, ग्रामियं भजिअं सई। दितिय पडियाइवखे, न मे कप्पइ तारिसं // 20 // तहा कोलमणुस्सिन्नं, वेलुओं कासवनालियं / तिलपप्पडगं नीमं, यामगं परिवजए // 21 // तहेव चाउलं पिटु, वियडं वा तत्तनिबुडं / तिलपिट्ट पइपिन्नागं, श्रामगं परिवजए // 22 // कविट्ठ माउलिंगं