________________ भीमद्दशकालिक-सूत्रम् / / अध्ययनं 5 ] [15 थ पडिक्कमे // 88 // अाभोइत्ताण निसेसं, अईयारं जहक्कम / गमगागमणे घेव, भत्तपाणे व संजए // 86 // उज्जुप्पन्नो अणुविग्गो, अव्वविखत्तेण चेयसा / बालोए गुरुसगासे, जं जहा गहियं भवे // 10 // न सम्ममालो. इयं हुजा, पुब्धि पच्छा व जं कडं / पुणो पडिकमे तस्स, वोसट्टो चिंतए इमं // 11 // ग्रहो जिणेहिं असावजा, वित्ती साहूण देसिया / मुक्खसाहण-हेउस्स, साहुदेहस्स धारणा // 12 // णमुक्कारेण पारित्ता, करित्ता जिणसंथवं / सज्झायं पट्टवित्ताणं, वीसमेज खणं मुणी // 13 // विसमंतो इमं विते,, हियम8 लाभमट्ठियो / जइ मे अणुग्गहं कुजा, साहू हुजामि तारियो // 14 // साहवो तो चियत्तेणं, निमंतिज जहक्कमं / जइ तत्थ केइ इच्छिजा, तेहिं सद्धिं तु मुंजए // 15 // यह कोइ न इच्छिज्जा, तयो भुजिज एक्कयो / बालोए भायणे साहू, जयं अपरिसाडियं // 16 // तित्तगं व कडुयं व कसायं, अंबिलं व महुरं लवणं वा। एय-लद्ध-मन्नत्थपउत्तं, महुघयं व भुजिज संजए // 17 // अरसं विरसं वावि, सूइयं वा असूइयं / उल्लं वा जइ वा सुवकं, मंथु कुम्मास-भोगणं // 18 // उप्पराणं नाइहीलिजा, अप्पं वा बहु फासुयं / मुहालद्धं मुहाजीवी, भुजिज्जा दोसवजिधं // 16 // दुल्लहा उ मुहादाई, मुहाजीवी वि दुल्लहा / मुहादाई मुहाजीवी, दोऽवि गच्छंति सुग्गई // 100 // त्ति बेमि. // इति पञ्चमाध्ययने प्रथम उद्देशक || 5.1 / / // 5 // अथ पिण्डैषणाध्ययने द्वितीय उद्देशकः // पडिग्गहं संलिहिताणं, लेवमायाए संजए / दुगंधं वा सुगंधं वा, सव्वं भुजे न छड्डए // 1 // सेजा निसीहियाए, समावन्नो श्र गोगरे / यायावयट्ठा भुच्चाणं, जइ तेणं न संथरे // 2 // तयो कारणमुप्परणे, भत्तपाणं गवेसए / विहिणा पुव्वउत्तेणं, इमेणं उत्तरेण य॥ 3 // कालेण निक्खमे भिक्खू, कालेण य पडिक्कमे / अकालं च विवजित्ता, काले कालं