________________ 14] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / त्रयोदशमों विमागा // 6 // कई मूलं पलं वा, प्रामं छिन्नं व सन्निरं / तुबागं सिंगबेरं च, श्रामगं परिवजए॥ 70 // तहेव सत्तुचुराणाई, कोलचुराणाई श्रावणे / सक्कुलिं फाणियं पूयं, अन्नं वावि तहाविहं // 71 // विकायमाणं पसदं, रएणं परिफासियं / दितिय पडियाझखे, न मे कप्पइ तारिसं // 72 // बहुअट्ठियं पुग्गलं, अणिमिसं वा बहुकंटयं / अस्थियं तिंदुयंबिल्लं, उच्छुखंड व सिंबलिं // 73 // अप्पे सिया भोरणजाए, बहुउजिय धम्मिए / दितियं पडियाइपखे, न मे कप्पइ तारिसं // 74 // तहेवुच्चावयं पाणं, अदुवा वारधोत्रणं / सप्सेइमं चाउलोदगं, पहुणाधोधे विवजए // 75 / / जं जाणेज चिराधोयं, मईए दंसणेग वा / पडिपुच्छिऊण सुच्चा वा, जं च निस्संकियं भवे // 76 // अजीवं परिणयं नचा, पडिगाहिज संजए। ग्रह संकियं भविजा, यासाइत्ताण रोगए।। 77 // थोषमासायणट्ठाए, हत्थगंमि दलाहि मे / मा मे अचंबिलं पई, नालं तरहं विणित्तए // 78 // तं च अचंबिलं पुयं, नालं तरहं विणित्तए / दितिय पडियाइरखे, न मे कप्पइ तारिसं.१७॥तंत्र होज यकामेण, विमणेणं पडिच्छियं / तं अप्पाणा न पिबे, नोवि अन्नस्स दावए // 80 // एगंत-मवकमित्ता, अचित्तं पडिलेहिया / जयं परिविजा, परिठ्ठप्प पडिक्कमे // 81 // सिया अगोयरग्गगयो, इच्छिजा परिभुजिउं(भुत्तु)।कुटुंगं भित्तिमूलं वा, पडिलेहित्ताण फासुग्रं // 82 // अणुनवितु मेहावी, पडिच्छ. न्नभि संवुडे / हत्यगं संपमजित्ता, तत्थ भुजिज संजए // 83 // तत्थ से भुजमाणस्स, अट्ठियं कंटयो सिया। तणकट्ठसकरं वावि, अन्नं वावि तहाविहं // 84 // तं उविखवित्तु न निक्खिवे, यासएण न छड्डए / हत्थेण तं गहेऊण, एगंत-मवक्कमे // 85 // एगंत-मवक्कमित्ता, अचित्तं पडिलेहिया। जयं परिविजा, पट्टिप्प पडिक्कमे // 86 // सिधा य भिक्खू इच्छिज्जा, सिजमागम्म भुत्तुयं / सपिंडपायमागम्म, उंडुयं पडिलेहिया // 87 // विणएणं पविसित्ता, सगासे गुरुणो मुणी। इरियावहियमायाय, श्रागयो