________________ श्रीमद्दशनकालिक-सूत्रम् // अध्ययनं 4 ] [ 13 वणिमट्ठा पगडं इमं // 51 // तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अपि / दितियं पडियाक्खे, न मे कप्पइ तारिसं // 52 // असणं पाणगं वा वि, खाइमं साइमं तहा। जं जाणिज सुणिजा वा, समणट्ठा पगडं इमं // 53 // तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पियं / दितिय पडियाइवखे, न मे कप्पइ तारिसं // 54 // उदोसियं कीगडं, पूइकम्मं च पाहडं। अझोय-पामिच्चं, मीसजायं विवजए // 55 // उग्गमं से अ पुच्छिज्जा, कस्सट्टा केण वा कडं / सुच्चा निस्संकियं सुद्धं, पडिगाहिज संजए // 56 // असणं पाणगं वावि, खाइमं साइमं तहा / पुप्फेसु हुज उम्मीसं, बीएसु हरिएमु वा // 57 // तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अकपियं / दितिय पडियाइवखे, न मे कप्पइ तारिसं // 58 // असणं पाणगं वावि, साइमं खाइमं तहा। उदगंमि हुज निक्खित्तं, उत्तिंगपणगेसु वा // 56 // तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पियं / दितियं पडियाइवखे, न मे कप्पइ तारिसं // 60 // असणं पाणगं वावि, खाइमं साइमं तहा / तेउम्मि हुज निक्खित्तं, तं च संघट्टिया दए // 61 // तं भवे भत्तयाणं तु, संजयाण अकप्पियं / दितियं पडियाइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं // 62 // एवं उस्सक्किया योसक्किया, उज्जालिया पजालिया। निव्वाविया, उस्सिचिया, निस्सिचिया उव्यत्तिया श्रोयरिया दए // 63 // तं भवे भतपाणं तु, संजयाण अकप्पियं / दितिय पडिभाइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं // 64 // हुज कट्ठ सिलं वावि, इट्टालं वावि एगया। ठवियं संकमट्ठाए, तं च होज चलाचलं // 65 // ण तेण भिक्खू गच्छिज्जा, दिट्ठो तत्थ असंजमो / गंभीरं झुसिरं चेव, सबिदिय-समाहिए // 66 // निस्सेणिं फलगं पीढं, उस्तवित्ताण-मारहे / मंचं कीलं च पासायं, समणट्ठा एव दावए / 67 // दुरूहमाणी पडिजा, हत्थं पायं व लूसए / पुढविजीवे विहिंसिज्जा, जे अ तन्निस्तिया जगे // 68 // एवारिसे महादोसे, जाणिउण महेसिणो / तम्हा मालोहडं भिक्खं, न पडिगिरहंति संजया