________________ 82] / श्रीमद्भागमसुधासिन्धुः / / त्रयोदशमो विभाग तिन्नि व परेणं / तं त्रिय अइप्पमाणं भुजइ जंवा अतिप्पंतो // 647 // हियाहारा मियाहारा, अप्पाहारा य जे नरा / न ते विजा तिगिच्छति, अप्पाणं ते तिगिच्छगा॥ 648 // तेल्लदहि-समारोगा अहियो खीरदहि-कंजियाणं च / पत्थं पुण रोगहरं न य हेऊ होइ रोगस्स // 641 // अद्धमसणस्म सव्वंजणस्स कुजा दवस्स दो भागे / वाऊ-पवियार-गट्ठा छन्भायं ऊणयं कुजा // 650 // मियो उसिणो साहारणो य कालो तिहा मुणेय वा / माहारणंमि काले तत्थाहारे इमा मत्ता // 651 // सीए दवस्म एगो भत्ते चत्तारि अहव दो पाणे / उसिणे दवरस दोन्नि उ तिन्नि व सेसा उ भत्तस्स / 652 // एगो दवस्त भागो अवट्ठितो भोयणस्स दो भागा / वडांति व हायति व दो दो भागा उ एक्केक्के // 653 // एत्थ उ तइय-चउत्था दोगिण य अणवट्ठिया भवे भागा। पंचमट्ठो पढमो वियोऽवि श्रवट्ठिया भागा // 654 / / तं होइ सइंगालं जं श्राहारेइ मुच्छियो संतो। तं पुण होइ सधूमं जं थाहारेइ निंदतो // 655 // अंगारत्तमपत्तं जलमाणं इंधणं सधूमं तु। अंगारत्ति पवुच्चइ त चिय दडदं गए धूमे // 656 // रागग्गि-संपलित्तो भुजंतो फासुपि श्राहारं / निद्ददंगाल-निभं करेइ चरणिंधणं खिप्पं // 657 // दोसग्गीवि जलंतो अप्पत्तिय-यूम-धूमियं चरणं / अंगार-मित्तसरिसं जा न हवइ निद्दही ताव // 658 // रागेण सइंगालं दोसेण सधूमगं मुणेयध्वं / छायालीप्त दोसा बोद्धव्वा भोयणविहीए // 65 // श्राहारंति तवरसी विगइंगालं च विगयधूमं च / झाणज्झया-निमित्तं एसुवएसो पवयणस्स // 660 // छहिं कारणेहिं साधू श्राहारितोऽवि थायरइ धम्मं / छहिं चेव कारणेहिं णिज्जू. हिंतोऽवि थायरइ // 661 // वेयण वेयावच्चे इरियट्टाए' य संजमाए। तह पाणवत्तियाए छ8पुण धम्मचिंताए // 662 // नत्थि छुहाए सरिसा वियणा भुजेज तप्पसमणट्टा / छायो वेयावच्चं ण तरइ काउं अयो भुजे // 663 // इरिग्रं न वि सोहेई पेहाईधं च संजमं काउं। थामो वा