________________ भीपिण्डनिपुतिः ] [81. चरियं व कप्पियं वा पाहरणं दुविहमेव नायव्वं / अत्थस्स साहणट्ठा इंधण. मिव बोयणटार // 630 // ग्रह मंसंमि पहीणे झायने माच्छयं भगइ मच्छो / किं झायमि तं एवं ? सुण तार जहा अहिरियोऽसि // 631 // तिबलाग-मुहुम्मुक्को, तिखुत्तो वलयामुहे / तिसत्तक्खुत्तो जालेणं, सइ छिन्नोदए दहे // 632 // एयारिसं ममं सत्तं, सढं घट्टिय-घट्टणं / इच्छसि गलेण घेत्तु, अहो ते अहिरीयया // 633 // बायालीसेसण-संकमि गहणंमि जीव ! न हु छलि यो / इसिंह जह न छलिजसि भुजतो रागदोसेहिं // 634 // घासेपणा उ भावे होइ पसत्था तहेव अपसस्था / अपसत्था पंचविहा तव्विवरीया पसत्था उ // 635 // दव्वे भावे संजोयणा उ दव्वे दुहा उ बहियंतो। भिक्खं चिय हिंडतो संजोयंतमि बाहिरिया // 636 // खीरदहि-सूबकट्टरलंभे गुडमप्पि वडग-वालुके / अंतो उ तिहा पाए लंबणं वयणे विभासा उ॥६३७॥ संयोयणाए दोसो जो संजोएइ भत्तपाणं तु / दवाई रमहेउं वाघायो तस्सिमो होइ // 638 // संजोयणा उ भावे संजोएऊण दवाई / संजोयइ कम्मेणं भवं तयो दुक्खं // 631 // पत्तेय पउरलंभे भुत्नुवरिए य सेसग-मणट्ठा / दिट्ठो संजोगो खलु ग्रह कमो तस्सिमो होइ // 640 // रसहेउं पडिसिद्धो संयोगो कप्पए गिलाणट्ठा / जरस व अभत्तछंदो सुहोचि. थोऽभावियो जो य // 641 // बत्तीसं किर कबला याहारो कुच्छिपूरयो भणियो / पुरिसस्म महिलियाए अट्ठावीसं भवे कवला // 642 // एत्तो किणाइ हीणं अद्धं श्रद्धद्धगं च श्राहारं / साहुस्स बिति धीरा जायामायं च श्रोमं च // 543 // पगाम च निगामंच, जो पनीयं भत्तपाणमाहरे / अइबहुयं अइबहुसो, पमाणदोसो मुणेयव्यो // 644 // बत्तीसाइ परेणं पगाम निच्चं तमेव उ निकामं / जं पुण गलंतनेहं पणीयमिति त बुहा बेति // 645 // अइबहुयं अइबहुसो अइपमाणेण भोयणं भो। हाएज व वामिज व मारिज वतं अजीरंतं // 646 / / बहुयातीयमइबहुँ अबहुसो तिनि