________________ [ श्रीमार्गमसुभासिनु त्रयोदशमो विभाग: तर, समयं गोयम ! मा पमायए // 35 // बुद्धे परिनिव्वुड़े चरे, गामगए नगरे व संजए / सन्तीमग्गं च बूहए, समयं गोयम ! मा पमायए // 36 // बुद्धस्स निसम्म भासियं, सुकहिय-मट्ठ-पयोवसोहियं / रागं दोसं च छिन्दिया, सिद्धिं गई गए भयवं गोयमे // 37 // त्ति बेमि // // इति दशममध्ययनम् // 10 // // 13 // अथ बहुश्रुत-पूजाख्यमेकादशममध्ययनम् // ____ संजोगा विप्पमुक्कस्स, अणगारस्म भिक्खुणो / अायारं (विणयं) पाउकरिस्सामि, प्राणुपुरि सुणेह मे // 1 // जे यावि होइ निविज्जे, थद्धे लुद्धे अणिग्गहे / अभिक्खणं उल्लवई, अविणीए अबहुस्सुए // 2 // ग्रह पञ्चहिं ठाणेहिं, जेहिं सिक्खा न लगभई / थम्भा मोहा पमाएणं रोगेणालस्सेण य // 3 // यह अहिं गणेहिं, सिक्खासीले ति वुच्चइ / अहस्सिरे सया दंते, न य मम्ममुदाहरे // 4 // नासीले व विसीले, न सिया अइलोलुए। अकोहणे सच्चरए, सिक्खासीले ति वुच्चइ // 5 // अह चउद्दसहिं ठाणेहिं, वट्टमाणे उ संजए। अविणीए वुचई सो उ, निव्वाणं च न गच्छइ // 6 // अभिक्खणं कोही भाइ पबन्यं च पकुवइ / मित्तिजमाणो वमइ, सुयं लभ्रूण मजइ // 7 // अवि पावपरिक्खेवी, अवि मित्तेसु कुप्पई / सुप्पियस्सावि मित्तस्स, रहे भासइ पावयं // 8 // पइन्नवाई दुहिले, यद्धे लुद्धे अनिग्गहे / असंविभागी प्रचियत्ते, अविणीए त्ति वुच्चइ // 1 // ग्रह पनरसहि गणेहिं, सुविणीए त्ति वुच्चइ / नीयावित्ती अचवले अमाई अकुऊहले // 10 // अप्पं च अहिक्खिवइ, पबंधं च न कुब्बई / मित्तिजमाणो भयई, सुयं लटुन मन्जई // 11 // न य पावपरिक्खेवी, न य मित्तेसुः कुपई / अप्पियस्सावि मित्तस्स, रहे कलाण भासई // 12 // कलहडमरवजए, बुद्धे अभिजाइगे। हिरिमं पडिसंलीणे सुविणीए ति वुचई // 13 // वसे गुरुकुले निच्चं, जोगवं उवद्यावं / पियंकरे पियंवाई, से सिवखं लद्ध