________________ श्रीमदुत्तराध्यानसूत्रम् :: अध्ययनं 31] [ 166 पडिमासु, भयहाणेसु सत्तसु / जे भिक्खू जयई निच, से न अच्छइ मंडले // 1 // मएमु वभगुती , भिावुध-मंमि दसविहे / जे भिक्खू जयई निच, से न अच्छइ मण्डले // 10 // उवास्गाणं पडिमास, भिक्खूणं पडिमासु य / जे भिखू जबई निचं, से न अच्छइ मण्डले // 11 // किरियासु भूयगामसु, परमाहम्मिएसु य / जे भिवखू जयई निच्चं, से न यच्छइ मराडले // 12 // गाहासोलसएहि, तहा अस्संजमंमिश्र / जे भिवखू जयई निच्चं, से न अच्छइ मण्डले // 13 // बभमि नायज्भयणेसु, टाणं सु यऽसमाहिए / जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मण्डले // 14 // इकवीमाए सबलेसुबाशीसाए परीमहे / जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मण्डले // 15 // तेवीसाइ सूयगडे, रूवाहिएसु सुरेसु य / जे भिक्ख जयई नि चं, से न अच्छइ मण्डले // 16 // पणवीसा भाषणाहिं च, उद्दे सेसु, दसाइणं / जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मण्डले // 17 // श्रणगारगुणेहिं च, पगप्प.म्म तहेव य / जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मराडले // 18 // पावसुय-पसंगेसु, मोहटाणेसु चेव य / जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मराडले // 11 // सिद्धाइगुण-जोगेसु, तित्तीसाऽऽसायणासु य / जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मण्डले // 20 // इ एएसु ठाणेसु, जे भिक्खू जयई सया। खिप्पं से सव्वसंसारा, विष्षमुबइ पण्डिए // 21 // ति बेमे // // इति एकत्रिंशमध्ययनम् // 31 // // 32 // अथ प्रमादस्थानाख्यं द्वात्रिंशमध्ययनम॥ अञ्चन्तकालस्स समूलयस्स, सव्वस्स दुक्खस्स उ जो पमोक्खो। तं भासयो मे पडिपुन्नचित्ता, सुणेह एगग्ग(एगन्त)हियं हियत्थं // 1 // नाणस्स सब(च)स्स पगासणाए अन्नाणमोहस्स विवजणाए / रागस्स दोसस्स य संखएणं, एगंतसुक्खं समुवेइ मोवखं // 2 // तस्सेस मग्गो गुरुविध सेवा,