________________ [ 31 श्रीमद्दशवैकालिक-पुत्रम् / अध्ययनं 9 ] विणयो, मूलं परमो से मुक्खो / जेण कित्तिं सुग्रं सिग्धं, नीसेसं चाभिगच्छइ // 2 // जे य चराडे मिए थद्धे, दुव्वाई नियडी सढे / वुझई से अवि. णीयप्पा, कट्ठ सोयगयं जहा // 3 // विणयं पि जो उवाएणं, चोईयो कुप्पई नरो। दिव्वं सो सिरिमिजन्ति, दंडेण पडिसेहए // 4 // व्हेब श्रवणीयप्पा, उववज्झा हया गया। दीसन्ति दुहमेहन्ता, याभियोग-मुव. ट्ठिया // 5 // तहेव सुविणीअप्पा, उववज्झा हया गया। दीसन्ति सुहमेहन्ता, इढि पत्ता महायसा // 6 // तहेव अविणीअप्पा लोगसि नर-नारियो / दीमन्ति दुहमेहन्ता, छाया ते विगलिन्दिया // 7 // दण्ड-सत्थ परिजुराणा, यमभ-वयणेहि य / कलुणा विवन्न-छन्दा, खुप्पियाप्ता-परिगया / / 8 // तहेव सुविणीयप्पा, लोगंलि नर-नारियो / दीसन्ति सुहमेहन्ता, इति पत्ता महा. यमा // 1 // तहेव अविणीयप्पा, देवा जक्खा य गुल्मगा। दीसन्ति दुह. मेहन्ता, याभियोग-मुवट्ठिया // 10 // तहेव सुविणीयप्पा, देवा जक्खा अ गुन्झगा। दीसन्ति सुहमेहन्ता, इढि पत्ता महायसा // 11 // जे पायरियउवमायाणं, सुस्सूसा-वयणं करा / तेसिं सिक्खा पड्डन्ति, जलसित्ता इव पायवा // 12 // अप्पणट्ठा परट्ठा वा, सिप्पा नेउणियाणि य। गिहिणो उपभोगट्टा, इह लोगस्स कारणा // 13 // जेण बन्धं वहं घोरं, परिश्रावं च दारुणं / सिम्खमाणा नियच्छन्ति, जुत्ता ते ललिइन्दिया // 14 // तेवि तं गुरु पून्ति, तस्स सिप्पस्स कारणा / सकारेन्ति नमंसन्ति, तुट्ठा निदसवत्तिणो // 15 // किं पुण जे सुग्रग्गाही, अणन्त हियकामए / पायरिया जं वए भिकाय, तम्हा तं नाईवत्तए // 16 // नीयं सेज्जं गई ठाणं, नीयं च यासणाणि य / नीयं च पाए वन्दिजा, नीयं कुन्ना य अंजलिं // 17 // संघट्टइत्ता काएणं, तहा उवहिणामवि / खमेह अवराहं मे, वइज न पुणु ति य॥ 18 // दुग्गयो वा पयोएणं, चोइयो वहइ रहं / एवं दुबुद्धि किचाणं वुत्तो वुत्तो पडुब्बई // 16 // (यालवन्ते लवन्ते वा, न निमिजाइ पडि