________________ 68.] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः : त्रयोदशमो क्मिागर एमेव सेसियासुवि सुयमाइसु करणकारणं सगिहे / इड्डीसु धाईसु य तहेव उबट्टियाण गमो // 421 // लोलइ महीऍ धूलीऍ गुडियो राहाणि अहवणं मज्जे / जलभीर अवलनपणो अइउप्पिलणे य रतन्छो // 422 // अभंगिय संवाहिय उन्नट्टिय मजियं च तो बालं / उवणेइ मजाई मंडणधाईएँ सुइदेहं // 423 // उपुयाइएहिं मंडेहि ताव णं ग्रहब णं विभूसेमि। हथिचगा व पाए कया गलिचा व पाए वा // 424 // ढढरसर छन्नमुहो मउयगिरो मउयमम्मणुलावो / उल्लावणगाईहि व करेइ कारेइ वा किड्ड // 425 // थुलीऍ वियडपायो भग्गकडी सुक्कडाए दुखं च। निम्मंस कवखड-करेहि भीरुयो होइ घेप्पते // 426 // कोलइरे वत्थव्वो दत्तो याहिंडयो भवे सीसो। अबहरइ धाइपिंडं अंगुलिजलणे य सादिव्वं // 427 // श्रोमे संगमथेरा गच्छ विसज्जति जंघवलहीणा। नवभागखेतवसही दत्तस्त य थागमो ताहे / 40 // उसयबाहिं ठाणं अनाउंछेण संकिलेसो य / पूय - चेडे मा स्य पडिलाभण दियडणा सम्मं // 41 // (भा०) सरगाम परग्गामे दुविहा दूई उ होइ नायब्वा / सा वा सो वा भणई भणइ व तं छन्नरयणेणं // 428 / एक्कावि य दुरिहा पागड बन्ना य छन्न दुविहा उ / लोगुत्तरि तत्थेगा बीया पुण उभयपक्खेऽवि(सु) // 421 // भिवखाई वच्चंते अप्पाहणि नेइ खंतियाईणं / सा ते अमुगं माया सो व पिया ते इमं भगइ // 430 // दूइत्तं खु गरहियं अप्पाहिउँ बिइयपचया भगति / अविकोविया सुया ते जा श्राह इमं (मई) भणसु खंतिं // 431 // उभयेऽवि य पच्छन्ना खंत ! कहिजाहि खंतियाएँ तुमं। तं तह संजायति य तहेव ग्रह तं करेजासि // 432 // गामाण दोराह वेरं सेजायरि धूय तत्थ खंतस्स / वहपरिणय खंतज्झत्थ(पाह)णं व णाए कए जुद्धं // 433 // जामाइपुत्त-पइमारणं च केण कहियंति जणवाश्रो / जामाइपुत्त-पइमारएण खंतेण मे सिट्ठ // 434 // नियमा तिकालविसएऽवि निमित्ते छब्बिहे भवे दोसा / सज्जं तुवट्टमाणे