________________ 10. [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / त्रयोदशमो विभागः दुल्लहा सुगइ तारिसगस्स // 26 // तवोगुण-पहाणस्स उज्जुमइ-खंति-संजमरयस्स / परीसहे जिणंतस्स सुलहा सुगइ तारिसगस्स॥ २७॥पच्छाऽवि ते पयागा खिप्पं गच्छति अमरभवणाई। जेसि पियो तवो संजमो य खंती थ बंभवेरं च // 28 // इच्चेअं छज्जीवणियं समद्दिट्टी सया जये। दुल्लाहं लहित्तु सामन्नं, कम्मुणा न विराहिज्जासि ति बेमि // 21 // // इति चतुर्थमध्ययनम् // 4 // // 5 // अथ श्रीपिण्डैषणाऽध्ययनम् :: प्रथमो उद्देशकः // संपत्ते भिक्खकालंमि, असंभंतो अमुच्छियो / इमेण कमजोगेण, भत्तपाणं गवेसए // 1 // से गामे वा नगरे वा, गोवरग्गयो मुणी / चरे मंदमणुबिग्गो, अबक्खित्तेण चेयसा // 2 // पुरयो जुगमायाए, पेहमाणो महिं चरे / वज्जतो बीअहरियाई, पाणे य दगमट्टियं // 3 // श्रोवायं विसमं खाणु, विजलं परिवज्जए / संकमेण न गच्छिज्जा, विजमाणे परकमे // 4 // पवडते व से तत्थ, पक्खलंने व संजए। हिंसेज पाणभूयाई, तसे अदुव थावरे // 5 // तम्हा तेण न गच्छिजा, संजए सुसमाहिए। सइ अन्नेण मग्गेण, जयमेव परकमे // 6 // इंगालं छारियं राति, तुसरासिं च गोमयं / ससरक्खेहिं पाएहिं, संजयो तं नइकमे // 7 // नं चरेज वासे वासने, महियाए वा पडंतिए / महावाए व वायंते, तिरिच्छ-संपाइमेसु वा // 8 // न चरेज वेससामंते, बंभचेरवसाणुए / बंभचारिस्त दंतस्स हुजा तत्थ विसुत्तिया // 1 // अणायणे चरंतस्स, संसग्गीए अभिवखणं / हुज वयाणं पीला, सामन्नंमि अ संसो॥ 10 // तम्हा एवं विश्राणित्ता, दोसं दुग्गइवड्ढणं / वजए वेससामंतं, मुणी एगंतमस्सिए // 11 // साणं सूइयं (सूर्य) गाविं, दित्तं गोणं हयं गयं / संडिम्भं कलहं जुद्धं, दुरो परिवज्जए // 12 // अणुन्नए नावणए, अप्पहि8 श्रणाउले / इंदियाइं जहाभागं, दमइत्ता मुणी चरे // 13 // दवदवस्स न गच्छेन्जा, भासमाणो अ गोगरे / हसंतो नाभिग