________________ श्रीमदशौकालिक-सूत्रम् / / अध्ययनं 5 ] [11 च्छिज्जा, कुलं उच्चावयं सया॥१४॥ आलोग्रंथिग्गलं दारं, संधिं दगभवणाणि य / चरंतो न विनिज्झाए, संकट्ठाणं विवजए // 15 // रराणो गिहवईणं च, रहस्सा-रक्खियाण च / संकिलेसकरं ठाणं, दूरयो परिवजए // 16 // पडिकुटुं कुलं न पविसे, मामगं परिवजए। अचियत्तं कुलं न पविसे, चिअत्तं पविसे कुलं // 17 // साणी-पावार-पहियं, अप्पणा नावपंगुरे। कवाडं नोपणुल्लिज्जा, उग्गहंसि अजाइथा // 18 ॥गोबरग्गपविठ्ठो अ, वचमुत्तं न धारए। योगासं फासुग्रं नच्चा, अणुनविय वोसिरे // 11 // णीयदुवारं तमसं, कोट्टगं परिवज्जए / अचक्खुविसयो जत्थ, पाणा दुप्पडिलेहगा॥२०॥ जत्थ पुष्फाइं बीयाई, पिप्पइन्नाई कुट्टए / अहुणोवलित्तं उल्लं, दवणं परि. वजए // 21 // एलगं दारगं साणं, वच्छगं वावि कुट्टए। उल्लंघिया न पविसे, विउहित्ताण व संजए // 22 // असंसत्तं पलोइज्जा, नाइदूरावलोपए। उप्फुल्लं न विनिज्माए, नियहिज अयंपिरो // 23 // अभूमिं न गच्छेजा, गोबरग्ग-गयो मुणी / कुलस्स भूमि जाणित्ता, मियं भूमि परकमे // 24 // तत्व पडिलेहिजा, भूमिभागं विकखणो / सिणाणस्स य वच्चस्स, संलोगं पविजए // 25 // दग मट्टिय-अायाणे, बीयाणि हरियाणि य / परिख जंतो चिट्ठिज्जा, सबिदियसमाहिए // 26 // तत्थ से चिटुमाणस्स, थाहरे पाण-भोयणं / अकप्पियं न गेरिहज्जा, पडिगाहिज कप्पियं // 27 // याहरंती सिया तत्थ, परिसाडिज भोयणं / दितियं पडियाइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं // 28 // संमद्दमाणी पाणाणि, बीयाणि हरियाणि / असंजमकरि नचा, तारिसं परिवजए॥ 21 // साहटु निविखवित्ताणं, सचित्तं घट्टियाणि य / तहेव समणट्टाए उदगं संपणुलिया // 30 // योगाहइत्ता चलइत्ता, याहरे पाणभोयणं / दितियं पडियाइवखे, न मे कप्पइ तारिसं // 31 // पुरेकम्मेण हत्थेण, दबीए भायणेण वा / दितियं पडिअाइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं // 32 // (एवं) उदउल्ले ससिणद्धे, ससरवखे मट्टियाउसे।