________________ [ 29 भीमद्दशकालिक-सूत्रम् / अध्ययन है] संसग्गो पणीयं रसभोयणं / नरस्सत्त-गवेसिस्स, विसं तालउडं जहा // 57 / / अंग-पच्चंग-संठाणं, चारुलवित्र-पेहियं / इत्थीणं तं न निज्माए, कामराग विवड्दणं // 58 // विसएसु मणुन्नेसु, पेमं नाभिनिवेसए / अणिच्चं तेसि विनाय, परिणाम पुग्गलाण य॥ 56 // पुग्गलाणं परिणाम, तेसि नच्चा जहा तहा। विणी तरहो विहरे, सीईभएण अप्पणा // 6 // जाइ सद्धाई निक्खतो, परियायाण-मुत्तमं / तमेव अणुपालिजा, गुणे पायरिय-संमए // 61 // तवं चिमं संजम-जोगयं च, सज्माय-जोगं च सया अहिट्ठिए / सूरे व सेणाइ समत्त-माउहे, अलमप्पणो होइ अलं परेसिं // 62 // सज्माय-सज्माण-रयस्स ताइणो, अपाव-भावस्स तवे रयस्स / विसुज्झइ जं सि मलं पुरेकडं, समीरियं रुपमलं व जोइणा // 63 // से तारिंगे दुक्खसहे जिइंदिए, सुरण जुत्ते अममे अकिंचणे / विरायई कम्मघणांमि अवगए, कसिणभ-पुडावगमेव व चंदिमे // त्ति बेमि // 64 // // इति अष्टममध्ययनम् // 8 // // 6 // अथ विनयसमाधि-नामक-नवममध्ययनम् // __थंभा व कोहा व मयप्पमारा, गुरुस्सगासे विणयं न सिवखे / सो चेव उ तस्म अभूभावो, फलं व कीयस्स वहाय होई // 1 // जे श्रावि मंदिति, गुरु विइत्ता, डहरे इमे अप्पसुअसत्ति नचा / हीलंति मिच्छ पडि. वजमाणा, करंति यासायण ते गुरुणं // 2 // पगईइ मंदा वि भवंति एगे, डहरा वि अ जे सुयबुद्धोक्वेया। यायारमंता गुणसुट्टिअप्पा, जे हीलिया सिहिरिख भास कुजा // 3 // जे प्रावि नागं डहरं ति नचा, थासायए से अहियाय होइ / एवायरियं पि हु हीलयंतो, नियच्छई जाइपहं खु मंदो // 4 // श्रासीविसो वा वि परं सुरुटो, किं जीवनासाउ परं न कुजा ! यापरियपाया पुण अप्पसन्ना, अबोहि-यासायण नत्थि मुक्खो // 5 // जो पावगं जलिअ-मवकमिजा, पासीविसं वा वि हु कोवईजा। जो वा