________________ श्रमदुत्तरी ययनसूत्रम्: अध्ययन 4 // 4 // अथ प्रमादाप्रमादा (असंखया)भिवं चतुर्थमध्ययनम् // , असंखयं जीविय मा पमायए, जरोवणीयस्स हु नत्थि ताणं / एवं वियाणाहि जणे पमत्ते, कराणु विहिंसा अजया गिहिन्ति // 1 // जे पावकम्मेहि धणं मणूमा, समाययन्ती अमई गहाय.। पहाय ते पासपयट्टिए नरे, वेराणुबद्धा नरयं उवेन्ति // 2 // तेणे जहा सन्धिमुहे गहीए, सकम्मुणा किन्नइ पावकारी / एवं पया पेच इहं च लोए, कडाण कम्माण न मुक्ख अस्थि // 3 // संसारमावन परस्स अट्टा, साहारणं जं च करेइ कम्मं / कम्मरस ते तस्स उ वेयकाले. न बन्धवा बन्धवयं उवेन्ति // 4 // वित्तेण ताणं न लभे पमत्ते, इमम्मि लोए अदुवा परस्था। दीवप्पण? व अणन्तमोहे. नेयाज्यं दद्रुमदट्ठमेव // 5 // सुत्तेसु यावी पडिबुद्धजीवी, न वीससे पण्डिए यासुपन्ने / घोरा मुहुत्ता अबलं सरीरं, भारुण्डपक्खी व चरऽप्पमत्तो // 6 // चरे पयाई परिसङ्कमाणो, जंकिञ्चि पासं इह मन्नमाणो। लाभन्तरे जीविय बूहइत्ता, पच्छा परिनाय-मलावधंसी // 7 // छन्दं निरोहेण उवेइ मोक्खं, अासे जहा सिक्खियवम्मधारी / पुव्वाइं वासाई चरऽप्पमत्तो, तम्हा मुणी खिप्पमुवेइ मुक्खं // 8 // म पुवमेवं न लभेज पच्छा, एसोऽवमा सासयवाइयाणं। विसीदई सिढिले पाउयंमि / कालोवणीए सरीरस्स भेदे // 1 // खिप्पं न सक्केइ विवेगमेउं, तम्हा समुट्ठाय पहाय कामे / समिच्च लोग समया महेसी, अप्पाणरक्खी चर मप्पमत्तो // 10 // मुहुमुह मोहगुणे जयन्तं, श्रणेगरूवा समणं चरन्तं / फासा फुमन्ती असमञ्जसं च, न तेसु भिक्खू मणसा पउस्से // 11 // मन्दा य फासा बहुलोहणिजा, तहप्पंगारेसु मणं न कुजा / रक्खिज कोहं विणएज माणं,मायं न सेवेज पहेज लोहं // 12 // जे संखया तुच्छ-परप्पवाई, ते विजदोसाणुगया परझा / एते अहम्मे ति दुगुच्छमाणो कङ्के गुणे जाव सरीरभेश्रो // 13 // त्ति बेमि // ॥इति चतुर्थमध्ययनम् // 4 //