________________ श्रीमदुत्तराध्ययनसूत्रम् :: अध्ययर्न 24 / / पढमे, बीए सोहिज एसणं / परिभोगंमि चउक्कं, विसोहिज जयं जई // 12 // श्रोहोवहोवग्गहियं, भंडयं दुविहं मुणी / गिराहतो निक्खिवंतो य पउंजिन्ज इमं विहिं // 13 // चक्खुसा पडिलेहित्ता, पमजिज जयं जई / श्रादिए निक्खिविजा वा, दुहयोऽवि समिए सया // 14 // उच्चारं पासवणं, खेलं सिंघाण. जल्लियं / श्राहारं उवहिं देहं, अन्नवावि तहाविहं // 15 // अणावाय मसंलोए अगावाए चेव होइ संलोए / श्रावायम-संलोए, आवाए चेव संलोए // 16 // अणावाय मसंलोए, परस्सऽणुवघाइए / समे अझुसिरे वावि, अचिरकालक्यंमि य // 17 // विच्छिन्ने दूरमोगाडे, णासन्ने बिलवजिए / तसपाणबीयरहिए, उच्चाराईणि वोसिरे // 18 // एयायो पंच समिईयो, समासेण वियाहिया / इत्तो उ तयो गुत्तीश्रो, बुच्छामि अणुपुब्वसो // 16 // सच्चा तहेव मोसा य, सञ्चमोसा तहेव य / चउत्थी असच्चमोसा य, मणगुत्ती चउ. बिहा // 20 // संरम्भ-समारम्भे, श्रारम्भे य तहेव्व य / मणं पवट्टमाणं तु, नियत्तिज जयं जई // 21 // सच्चा तहेव मोसा य, सच्चामोसा तहेव याचउत्थी असचमोसा य, वयगुनी चउव्विहा // 22 // संरम्भ-समारम्भे, प्रारम्भ . य तहेव य। वयं पवत्तमाणं तु, नियत्तिज जयं जई // 23 // ठाणे निसीयणे चेव, तहेव य तुयट्टणे / उल्लंघण पल्लंघण, इंदियाण य जुजणे // 24 // संरम्भसमारभे, थारंभे य तहेव य / कायं पवत्तमाणं तु नियत्तिज जयं जई // 25 // एयायो पंच समिईयो, चरणस्स य पवत्तणे। गुत्ती नियत्तणे वुत्ता, असुभत्थेसु य सव्वसो॥ 26 // एसा पवयणमाया, जे सम्मं श्रायरे मुणी / सो खिप्पं सव्वसंसारा, विप्पमुच्चइ पंडिए // 27 // त्ति बेमि // // इति चतुविंशमध्ययनम् // 24 //