________________ 26] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः त्रयोदशमो विभागः निच्चं होअव्वयं सिया / मणसा काय-वक्केणं, एवं हवइ संजए // 3 // पुढविं भित्ति सिलं लेलु', नेव भिंदे न संलिहे / तिविहेण करण-जोएण, संजए सुसमाहिए // 4 // सुद्धपुढवीए न निसीए, ससरवखंमि अ पासणे / पमजितु निसीइजा, जाइत्ता जस्स उग्गरं // 5 // सीयोदगं न सेविजा, सिलावुटु हिमाणि अ / उसिणोदगं तत्त-फासुग्रं, पडिगाहिज संजए // 6 // उदउल्लं अपणो कायं, नेव पुछे न संलिहे / समुप्पेह तहाभूग्रं, नो णं संघट्टए मुणी // 7 // इंगालं अगणिं अचिं, अलायं वा सजोइयं / न उंजिजा न घट्टिजा, नो णं निव्वावए मुणी // 8 // तालियंटेण पत्तेण, साहा विहुयणेण वा / न वीइज अप्पणो कायं, बाहिरं वा वि पुत्गलं // 1 // तणरुक्खं न छिदिजा, फलं मूलं च कस्सई / श्रामगं विविहं बीयं, मणसा वि न पत्थए // 10 // गहणेसु न चिट्ठिजा, बीएसु हरिएसु वा / उदगंमि तहा निच्चं उत्तिंग-पणगेसु वा // 11 // तसे पाणे न हिंसिन्जा, वाया अदुव कम्मुणा / उवरयो सव्वभूएस, पासेज विवहं जगं // 12 // अट्ट सुहुमाई पेहाए, जाई जाणिनु संजए / दयाहिगारी भूएसु, ग्रास चिट्ठ ताईं मेहावी, बाईखिज विअवखणे // 14 // सिणेहं पुप्फसहुमं च, पाणुत्तिगं तहेव य / पणगं- बीय-हरियं च, अंडसुहुमं च अट्ठमं // 15 // एवमेयाणि जाणित्ता, सव्वभावेण संजए। अप्पमत्तो जए निच्चं, सविदियसमाहिए // 16 // धुवं च पडिलेहिज्जा, जोगमा पायकंबलं / सिन्ज-मुच्चारभूमिं च, संथारं अदुवाऽऽसगां // 17 // उच्चारं पासवणं, खेलं सिंधाणजल्लियं / फासुग्रं पडिलेहित्ता, परिठ्ठाविज संजए // 18 / पविसित्तु परा. गारं, पाणट्ठा भोगणस्त वा / जयं चिट्ठ मियं भासे, न य रूवेसु मणं करे // 11 // बहुँ सुणेहि कन्नेहिं, बहुँ अच्छीहिं पिच्छई। न य दिट्ट सुयं सव्वं, भिक्खू अवखाउ-मरिहइ // 20 // सुयं वा जई वा दिट्ट, न