________________ श्रीमद्दशवकालिक-सूत्रम् :: अध्ययनं ] इमं गिराह इमं मुच, पणीयं नो वियागरे // 45 // अप्पग्धे वा महग्धे वा, कए वा विकए वि वा / पणिटे समुप्पन्ने, अणवज्ज वियागरे // 46 // तहेवासंजयं धीरो, यास एहि करेहि वा। सयं चिट्ठ वयाहि ति नेवं भानिज पनवं // 17 / बहवे इमे असाहू, लोए वुच्चंति साहुणो।न लवे असाहुँ साहुत्तेि, साहु साहुत्ति पालवे // 18 // नाण-दंसण-संपन्नं संजमे थ तवे रयं / एवं गुण-समाउत्तं, संजयं साहुमालवे // 46 // देवाणं मणुयाणं च, तिरियाणं च बुग्गहे। अमुगाणं जयो होउ, मा वा होउ त्ति नो वए // 50 // वायो युटुंच सीउराहं, खेमं धायं सिवंति वा / कया णु हुज ए. याणि ? मा वा होउ ति नो वए // 51 // तहेव मेहं व नहं व माणवं, न देवदेव त्ति गिरं वइना / समुच्छिए उन्नए वा परोए, वइज वा बुट्ठ बलाहये त्ति // 52 // अंतलिक्ख ति णं बूया, गुज्माणुचरिय तिथ। रिद्धिमंतं नरं दिस्त, रिद्धिमंतं ति पालवे // 53 // तहेव सावजणुमोग्रणी गिरा, योहारिणी जा य परोवघाइणी / से कोह लोह भय हास माणवो, न हासमाणोऽवि गिरं वइना // 54 // सुबकसुद्धिं समुपेहिया मुणी, गिरं च दुटु परिवजए सया। मियं यदुटुं अणुवीइ भासए, सयाण मज्झे लहइ पांसगां / / 55 // भासाइ दोसे य गुणे अ जाणिया, तीसे य दुट्टे परि. वजए सया। छसु संजए सामणिए सया जए, वइज बुद्धे हिश्रमाणुलोमियं // 56 // परिवखभासी सुसमाहि-इंदिए, चउकसाया-वगए अणिस्सिए / स निद्धुणे धुतमलं पुरेकडं, बाराहए लोगमिणं तहा परं // 57 // त्ति बेमि // // इति सप्तममध्ययनं समाप्तम् // 7 // // 8 // अथ श्री आचारप्रणिधि-नामक-मष्टममययनम् // अायार प्पणिहिं लद्ध,जह वायव्य भिक्खुणा / तं भे उदाहरिस्सामि, ग्राणुपुब्धि सुणेह मे // 1 // पुढवी दग-अगणिमारुत्र, तण रुक्ख सबीयगा। तसा अ पाणा जीव त्ति, ईई वुत्तं महेसिणा // 2 // तेसिं अच्छण-जोएण,