________________ श्रीपिण्डनियुक्तिः ] [ 71 याण उल्लार को हु पगेन / प्राणिज इटगायो ? खुद्दो पचाह आणेमि / / 466 // जइविय ता पजत्ता अगुलघयाहिं न ताहिं णे कज्जं / जारि. लियायो इच्छह ता थाणेमित्ति निक्खंतो॥ 467 // श्रोहासिय पडिसिद्धो भण्इ अगारि अवस्सिमा मज्झ / जइ लहसि तो तं मे नासाए कुणसु मोयंति [सा याह] // 468 // कस्स घर पुच्छिऊणं परिसाए अमुउ कइरो पुच्छितु / किं तेणऽम्हे जायसु सो किविणो दाहिइ न तुझं // 461 // दाहित्ति तेण भणिए जइ न भवसि छराहमेसि पुरिसाणं / अन्नयरो तो तेहं परिसाममि पणयामि // 470 // सेयंगुलि बगुड्डावे, किंकरे राहायए तहा / गिद्धावरंखि हहन्नए य पुरिसाहमा छाउ // 471 // जायसु न एरिसोऽहं इट्टगा देहि पुव्वमइगंतु / माला उत्तारि गुलं भोएमि दिएत्ति थारूदा // 472 // सिइयवणण पडिलाभण दिस्सियरी बोलमंगुली नासं। दुगहेगयर-पयोसो यायविवत्ती य उड्डाहो // 473 // रायगिहे धम्मरुई श्रसादभूई य खुड्डयो तस्स / रायनड-गेहपविलण संभोइय मोयए लंभो // 474 // यायरियउवझाए संघाडगकाण-खुजतहोसी / नडपासण पजतं निकायगा दिगो दिणे दाणं // 475 // धूयदुए संदेसी दाणसिगोह करणं रहे गहणं / लिंगं मुयत्ति गुरुसिट्ठ विवाहे उत्तमा पगई // 476 // रायघरे य कयाई निम्महिलं नाडगं तडागत्या / ता य विहरति मत्ता उवारे गिहे दोघे पासुत्ता // 477 // वावारण नियत्तो दिस्त विचेला विराग संबोही इंगियनाए पुच्छा पजीवणं रहवालंमि // 478 // इवखागवंस भरहो पायं. सघरे य केवलालो यो / हाराइखियण गमणं उवसग्ग न सो नियत्तोत्ति // 476 // तेण समं पवइया पंच नरसयत्ति नाडए डहणं / गेलन्न खमग पाहुण थेरा दिट्ठा य बीयं तु // 480 // लभंतंपि न गिराहइ अन्नं श्रमुगति अज घेच्छा.मे / भदरसंति व काउं गिराहइ खद्धं सिणिद्धाई // 481 // चंपा छमि घिच्छामि मोयए तेवि सीहकेसरए / पडिसेह धम्मलाभं काउणं