________________ 72 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः : त्रयोदशमो विभागः सीहकेसरए // 482 // सड्ढडरत्तकेसर-भायणभरणं च पुच्छ पुरिमड्ढे / उपयोग संत-चोयण साहुत्ति विगिंचणे नाणं // 483 // दुविहो उ संथयो खलु संबंधी-वयणसंथवो चेव / एक्केकोविय दुविहो पुखि पच्छा य नायवो // 484 // मायपिइ पुवसंथव सासूसुसराइयाण पच्छा उ / गिहि संथवसंबंधं करेइ पुव्वं च पच्चा वा // 485 // श्रायवयं च परवयं नाउं संबंधए तयगुरुवं / मम माया एरिसिया ससा व धूया व नत्ताई // 486 // अद्धिइ दिट्ठिपराहव पुच्छा कहणं ममेरिसी जणणी / थणखेवो संबंधो विहवासुरहाइहाणं च // 487 // पच्छा-संथवदोसा सासू विहवादि-धूयदाणं च / भजा ममेरिसिन्चिय सजो घाउ वयभंगो वा // 488 // मायावी चडुयारी अम्हं योहावणं कुणइ एसो। निच्छुभगाई पंतो करिज भद्देसु पडिबंधो // 481 // गुणमंथवेण पुब्बिं संतासंतेण जो थुणिजाहि / दायारमदिन्नमी सो पुबिसंथवो हवइ // 410 // एसो सो जस्स गुणा वियरंति अवारिया दसदिसानु / इहरा कहासु सुणिमो पचक्खं श्रज दिट्ठोऽसि // 411 // गुणसंथवेण पच्छा संतासंतेण जो थुणिजाहि / दायारं दिन्नमी सो पच्छासंथवो होइ॥ 412 // विमली-कयऽम्ह चक्खु जहत्थया(यो) वियरिया गुणा तुझं / पासि पुरा मे संका संपय निस्संकियं जायं // 413 // विजामंतपख्वण विजाए भिक्खुवासयो होइ / मंतंमि सीसवेयण तत्थ मुरुडेण दिढतो // 414 // परिपिडियमुल्लावो अइपंतो भिक्खुवासयो दावे / जइ इच्छह अणुजाणह घयगुल वत्थाणि दावेमि // 415 // गंतु विजामंतण किं देमि ? घयं गुलं च वस्थाई / दिन्ने पडिसाहरणं केण हियं केण मुट्ठोमि ? // 416 // पडिविज-थंभणाई सो वा अन्नो व से करिजाहि / पात्राजीवी. माई कम्मणगारी य गहणाई // 417 // जह जह पएसिणी जाणुगंमि पालित्तयो भमाडेइ / तह तह सीसे वियणा पणस्सइ मुरुंडरायस्स // 418|| पडिमंत-थंभणाई सो वा यन्नो व से करिजाहि / पावाजीवियमाई कम्मणगारी