________________ भीमदशवकालिक-स्त्रम् / अध्ययन 10) वसिज्जा / सुत्तस्त मग्गेण चरिन्ज भिक्खु, सुतस्स अत्यो जह पाणवेई // 11 // जो पुब्बरतावरत्तकाले, संपिक्खए अप्पग-मप्पगेणं / किं मे कडं किंत्र मे किच्चसेसं, कि सकणिज्जं न समायरामि // 12 // किं मे परोपासइ किं च अप्पा, किं वाहं खलियं न विवजयामि / इञ्चेव सम्मं अणुपासमाणो, अणागयं नो पडिबंध कुजा // 13 // जत्थेव पासे कइ दुप्पउत्तं, कारण वाया अदु माणसेणं / तत्थेव धीरो पडिसाहरिजा, श्राइनो खिपमित्र खलीणं // 14 // जस्सेरिसा जोग जिइंदिअस्स, धिईमत्रो सम्पुरिसस्म निच्चं / तमाहु लोए पडिबुद्रजीवी, सो जीबई संजम-जीविएणं // 15 // अप्पा खलु सययं रक्खियो, सबिदिएहिं सुसमाहिएहिं / अरक्खियो जाइपहं उवेइ, सुरक्खियो सव्वदुहाण मुबई ॥ति बेमि // 16 // ॥इति दिनीय पतिका // 2 // // इति श्रीदशवकालिक-सूत्रं समाप्तम् // (अन्यायं 700)