________________ 38] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः : त्रयोदशमो विभागः पिवाप्त जंतुणो / न चे सरीरेण इमेणऽविस्सई, अविस्सइ जीविय-पजवेण मे // 16 // जस्सेवमप्पा उ हविज निच्छियो, चउज देहं न हु धम्मसासणं / तं तारिस नो पइलंति इंदिया, उविंतवाया सुदंसणं गिरि // 17 // ईच्चेव संपस्सिय बुद्धिमं नरो, पायं उवायं विविहं विद्याणिया / कारण वा अदु माणसेणं, तिगुत्तिगुत्तो जिणवयण-महिटिजासि // तिबेमि // 18 // // इति प्रथमा चलिका // 1 // // अथ श्रीविविक्तचर्याऽभिधा द्वितीया चूलिका // चूलिग्रं तु पववखामि, सुयं केवलि भासियं / जं सुणित्तु सुपुराणाणं, धम्मे उप्पज्जए मई // 1 // अगुसोत्र-पट्टिअ-बहुजणमि, पडिसोय लद्धलक्खेणं / पडिसोअमेव अप्पा, दायवो होउ-कामेणं // 2 // अणुसोयसुहो लोयो, पडिसोयो पासवो सुविहिाणं / अणुसोओ संसारो, पडिसोयो तस्स उत्तारो॥ 3 // तम्हा बायार-परकमेणं, संवर-समाहि-बहुलेणं : चरिया गुणा अनियमा अ, हुँति साहूण दट्टव्वा // 4 // अनिएय-वामो समुयाणचरिया, अन्नाय-उंछं पइरिकया य / अप्पोवही कलहविवजणा अ, विहारचरिया इसिणं पसत्था // 5 // पाइन्न-योमाण-विवजणा अ, योसन्नदिहाड. भत्तपाणे / संसट्ट कप्पेण चरिज भिक्खू, तजाय-संसट्ठ जई जईजा // 6 // अमज-मंसासि अमच्छरीया, अभिक्खणं निविगई गा य / अभिवखणं काउस्सग्गकारी, सज्मायजोगे पययो हविजा। 7 // न पडिन्नविजा सयणासणाई, सिज्ज निसिज्ज तह भत्तपाणं / गामे कुले वा नगरे व देसे, ममत्तभावं न कहिं पि कुजा // 8 // गिहिणो वेयावडिग्रं न कुजा, अभि. वायण-वंदण-पूअणं वा / असंकिलिटेहिं समं वसिज्जा, मुणी चरित्तस्म जयो न हाणी // 1 // न या लभेज्जा निउणं सहायं, गुणाहियं वा गुणयो समं वा / इक्को वि पाबाई विवज्जयंतो, विहरिज्ज कामेसु असज्जमाणो // 10 // संवच्छरं वा वि परं पमाणं, बोयं च वासं न तहिं