________________ // अहम् // पूर्वोद्धृतजिनभाषित-श्रुतस्थाविर सन्दृब्ध षट्त्रिंशदध्ययन-समलङ्कृतं // श्रीमदुत्तराध्ययनसूत्रम् // // 1 // अथ विनयश्रुताख्यं प्रथममध्ययनम् // संजोगाविप्पमुक्कस्स, अणगारस्स भिक्खुणो / विणयं पाउकरिस्सामि, श्राणुपुब्बिं सुणेह मे // 1 // श्राणानिर्देसकरे गुरुणमुववायकारए। इङ्गियागारसंपन्ने से विणीएत्ति वुच्चइ // 2 // प्राणा निद्देसकरे, गुरूणमणुववायकारए / पडिणीए असंबुद्धे, अविणीएत्ति बुच्चइ // 3 // जहा सुणी पूइकराणी, निक्कसिज्जइ सव्वसो। एवं दुस्सीलपडिणीए मुहरी निकसिन्जइ // 4 // कणकुण्डगं चइत्ताणं, विट्ठ भुञ्जइ सूयरे / एवं सीलं चइत्ताणं, दुस्सीले रमई मिए // 5 // सुणियाऽभावं साणस्स, सूयरस्स, नरस्स य / विणए ठऽवेज अप्पाणमिच्छन्तो हियमप्पणो // 6 // तम्हा विणयमेसिज्जा, सीलं पडिलभे जयो। बुद्धपुत्ते(त)निश्रागट्ठी, न निकसिज्जइ कराहुई // 7 // निसन्ते सियाऽमुहरी, बुद्धाणं अन्तिए सया। अट्ठजुत्ताणि सिक्खिजा निरट्ठाणि उ वजए // 8 // अणुसासियो न कुप्पिजा खन्ति सेविज पण्डिए / खुड्डे हिं सह संसग्गि हासं कीडं च वजए // 1 // मा य चराडालियं कासी, बहुयं मा य थालवे / कालेण य अहिज्जित्ता, तो झाइज एगगो // 10 // श्राहच्च चण्डालियं कटु, न निराहविज कयाइ वि / कडं कडित्ति भासेज्जा, अकडं नो कडित्ति य // 11 // मा गलियस्सुव्व कसं, वयणमिच्छे पुणो पुणो / कसं व दट्ठ माइगणे, पावगं परिवजए