________________ श्रीमदुत्तराध्ययनस्त्रम् / / अध्ययनं 2 ] . __ (45 संतते / मायन्ने असणगणस्स, श्रदीणमणसो चरे // 3 // 1 / तो पुट्ठो पिवासाए, दोगुजछीलद्धसंजमे(लजसंजए, लजसंजमे) / सीयोदगं न सेविजा वियडस्सेसणं चरे // 4 // छिन्नावाएसु पन्थेसु, पाउरे सुपिवासिए। परिसुकमुहेऽदीण (सव्यतो य परिव्वए), तं तितिक्खे परिसहं // 5 // 2 / चरन्तं विरयं लूह, सीयं फुसइ एगया / नाइवेलं विहनिजा पावदिट्ठी विहन्नइ (मुणी गच्छे सोचाणं जिणसासणं)॥६॥ न मे निवारणं अस्थि, छवित्ताणं न विजई / ग्रहंतु अग्गि सेवामि, इइ भिक्खू न चिन्तए // 7 // 3 / उसिणपरियावेणं, परिदाहेण तजिए। प्रिंसु वा परियावेणं, सायं नो परिदेवर // 8 // उन्हाहितत्तो मेहावी, सिणाणं नाभि-(नो वि) पत्थए / गायं नो परिसिञ्चे जा, न वीएजा य अप्पयं // 1 // 4 / पुट्ठो य दंसमसएहिं, समरेव महामुणी / नागो संगामसीसे वा, सूरो अभिहणे परं // 10 // न संतसे न वारेजा, मणंपि न परोसए। उवेह न हणे पाणे, भुञ्जन्ते मंससोणियं // 11 // 5 / परिजुगणेहिं वत्थेहि, होक्खामित्ति अचेलए। अदुवा सचेलए होक्खं, इइ भिक्खू न चिन्तए // 12 // एगयाऽचेलए (अचेलए सयं) होइ, सचेले प्रावि एगया। एयं धम्महियं नचा, नाणी नो परिदेवए / / 13 // 6 / गामाणुगामं रीयन्तं, अणगारं अकिंचणं / अरई अंणुप्पविसे, तं तितिक्खे परिसहं // 14 // अरई पिट्ठयो किच्चा, विरए थायरक्खिर / धम्मारामे निरारम्भे, उवसन्ते मुणी चरे // 15 // 7 / सङ्गो एस मगुस्साणं, जायो लोगम्मि इथियो / जस्स एया परिन्नाया, सुकडं तस्स सामराणं // 16 // एमाणा(दा)य मेहावी, पङ्कभूया उ इथियो (जहा एया लहुस्सगं)। नो ताहिं विणिहनिजा, चरेजऽत्तगवेसए // 17 // 8 / एग (एगे) एव चरे लाढे(द), अभिभूय परीसहे / गामे वा नगरे वावि, निगमे वा रायहाणिए // 18 // यसमाणो चरे भिक्खू, नेव कुजा परिग्गहं / असंसत्तो गिहत्थेहि, अणिकेश्रो परिव्वए // 11 // 1 / सुसाणे