________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
: ३ :
सच्चे सुख की शोध
आज से नहीं, लाखों करोड़ों असंख्य वर्षों से संसार के कोने-कोने में एक प्रश्न पूछा जा रहा है कि यह प्रवृत्ति, यह संघर्ष, यह दौड़ धूप किस लिए है ? प्रत्येक प्राणी के अन्तहृदय से एक ही उत्तर दिया जा रहा है-सुख के लिए, आनन्द के लिए, शान्ति के लिए। हर कोई जीव सुख चाहता है, दुःख से भागता है । संसार का प्रत्येक प्राणी सुख के लिए प्रयत्नशील है । चींटी से लेकर हाथी तक, रंक तक, नारक से लेकर देवता तक क्षुद्र से क्षुद्र और महान् से महान् प्रत्येक संसारी प्राणी सुख को ध्रुवतारा बनाए दौड़ा जारहा है ! अनन्त अनन्त काल से प्रत्येक जीवन इसी सुख के चारों ओर चक्कर काटता रहा है । - सुख कौन नहीं चाहता ? शान्ति किसे अभीष्ट नहीं ? सब को सुख चाहिए | सब को शान्ति चाहिए
से लेकर राजा
सुख प्राप्ति की धुन में ही मनुष्य ने नगर बसाए, परिवार बनाए । बड़े-बड़े साम्राज्यों की नींव डाली, सोने के सिंहासन खड़े किए । सुख के लिए ही मनुष्य ने मनुष्य से प्यार किया, और द्वेष भी किया ! आज तक के इतिहास में हजारों खून की नदियाँ बही हैं, वे सब सुख के लिए
ही हैं, अपनी तृप्ति के लिए बही हैं। सुख की खोज में भटक कर मानव, मानव नहीं रहा, साक्षात् पशु बन गया है, राक्षस होगया है । यह क्यों हुआ ? भारतीय शास्त्रकारों ने सुख को दो भागों में विभक्त किया है । एक सुख आन्तरिक है तो दूसरा बाह्य । एक आत्मनिष्ठ है.
For Private And Personal