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मानव-जीवन का ध्येय
की संख्या में हैं, परन्तु वे कितने हैं, जो इन्सानियत की तराजू पर गुणों की तौल में पूरे उतरते हों ! सच्चा मनुष्य वही है, जिसकी आत्मा धर्म और सदाचार की सुगन्ध से निशदिन महकती रहती हो ।
भारत के प्रधानमंत्री पं० जवाहरलाल नेहरू ने २६ जनवरी १६४८ के दिल्ली-प्रवचन में मनुष्यता के सम्बन्ध में बोलते हुए कहा था--"भारतवर्ष ने हमेशा रूहानियत की, आत्मशक्ति की ही कद्र की है, अधिकार और पैसे की नहीं। देश की असली दौलत, इन्सानी दौलत है। देश में योग्य और नैतिक दृष्टि से बुलन्द जितने इन्सान होंगे, उतना ही वह आगे बढ़ता है।"
प्रधानमंत्री, भारत को लेकर जो बात कह रहे हैं, वह सम्पूर्ण मानव-विश्व के लिए है । मनुष्यता ही सबसे बड़ी सम्पति है । जिस के पास वह है, वह मनुष्य है, और जिस के पास वह नहीं है, वह पशु है, साक्षात् राक्षस है । और वह मनुष्यता स्वयं क्या चीज़ है ? वह है मनुष्य का व्यक्तिगत भोगविलास की मनोवृत्ति से अलग रहना, त्याग मार्ग अपनाना, धर्म और सदाचार के रंग में अपने को रँगना, जन्ममरण के बन्धनों को तोड़कर अजर अमर पद पाने का प्रयत्न करना । संसार की अंधेरी गलियों में भटकना, मानव-जीवन का ध्येय नहीं है । मानव-जीवन का ध्येय है अजर अमर मनुष्यता का पूर्ण प्रकाश पाना । बह प्रकाश, जिससे बढ़कर कोई प्रकाश, नहीं । वह ध्येय, जिससे बढ़कर कोई ध्येय नहीं।
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