Book Title: Jain Shasan
Author(s): Sumeruchand Diwakar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 33
________________ विश्व-निर्माता २५ freet for स्वयं अपनी ही शक्ति हो रहा है । यथार्थ में देश और उसके शासकको उपमा इस विश्वके विषयमें लगाना मिथ्या है।" कर्तुत्व पक्षवालोंके सहझ यह युक्ति भी उपस्थित की जाती है कि जब कर्त्ताके अभाव में प्रकृतिसिद्ध सनातन ईश्वरका सद्भाब रह सकता है और इसमें कोई आपत्ति या rouser नहीं आती है, तब यहो न्याय जगत्के अन्य पदार्थोके कवके विषय में क्यों न लगाया जाए ? ऐना कोई प्रकृतिका बटल नियम भी नहीं है कि कुछ वस्तुओंका कर्त्ता पाया जाता है, इसलिए सब वस्तुओंका कर्सा होना चाहिए। ऐसा करनेसे तर्कशास्त्रभत अल्प-पदार्थ-सम्बन्धी नियमको सार्वत्रिक पाया जानेवाला नियम मानने रूप दोष (Fallacy) आयेगा | इस प्रसंग में 'की ऑफ नॉलेज'की निम्न पंक्ति उपयुक्त हैं "सृष्टिकर्तृत्व के विषयमें यह प्रश्न प्रथन उपस्थित होता है कि ईश्वर ने इस विश्वका निर्माण क्यों किया ? एक सिद्धान्त कहता है कि इससे उसे आनन्दकी उपलब्धि हुई, तो दूसरा कहता है कि वह अकेलेपन का अनुभव करता था और इसलिए उसे साथी चाहिए थे। तीसरा सिद्धान्त कहता है कि बहू ऐसे प्राणियोंका निर्माण करना चाहता था जो उसका गुणगान करें तथा पूजा करें। चौथा पक्ष कहता है कि यह विनोदवश विश्वनिर्माण करता है। इस विषय में यह विचार उत्पन्न होता है कि विश्वकर्त्ता की ऐसा जगत् निर्माण करनेको इच्छा क्यों हुई जिसमें बहुत बड़ी संख्या में प्राणियोंको नियमतः दुःख और शोक भोगने पड़ते हैं ? उसने अधिक सुखी प्राणो क्यों नहीं बनाए जो उसके साथ में रहते 1. Who and what rules the Universe? So far as you can see, it rules itself and indeed the whole analogy with a country and its ruler is false.-Julian Huxley. 2. "The first question, which arises in connection with the idea of creation is, why should God make the world at all? One system suggests, that he wanted to make the world, because it pleased him to do so, another, that he felt lonely and wan ted company, a third, that he wanted to create beings who would praise his glory and worship; a fourth, that he does it in sport and so on. Why should it please the creator to create a world, where sorrow and pain are the inevitable lot of the majority of his creatures? Why should he not make happier beings to keep him company ?"-Key of Knowledge P. 135.

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