Book Title: Jain Shasan
Author(s): Sumeruchand Diwakar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

View full book text
Previous | Next

Page 231
________________ इतिहास के प्रकाशमें २२३ संस्कृतके पुरातन नाटक महाराणसका एक जीवसिद्धि नामका पाष दिगम्बर जंन मुनि के रूप में आकर कहता है ‘सासणमलिहन्ताणं पडिवज्जह मोहवाहिवेजाणं 1 जे मुत्तमात्तकडुझं पच्छा पत्थं उदिसति ।।...अंक ४ अरहंतों के शासनको स्वीकार करो, कारण वे मोहल्याधिक निवारणमें ध हैं। उनकी औषधि प्रारम्भमे कटु क, किन्तु पश्चात् लाभप्रद होती हूं । इस प्रकार अनेक प्रमाणोसे यह निर्णय सिद्ध होता है, कि 'अहंन्त" शब्द जैनधर्मके इष्ट देवका द्योतक है। हा मोधोका कथन है, "भगवान पार्श्वनाथको जैनधर्म के संस्थापक प्रमाणित करने वाले साधनोंका अभाव है। प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेवको जैनधर्मका संस्थापक प्रमाणित करनेम जैनपरम्परा एकमत है । इस परम्परामें, जो उनको प्रथम तीर्घकर बताती है, कुछ ऐतिहासिक तथ्य संभवनीय है ।" पूर्वोक्त अनेतर प्रमाण भी जब ऋषभदेवको जैनधर्मके संस्थापक बताते हैं, तब उसमें निश्चित ऐतिहासिक तथ्य मानना होगा अचमा एतिहासिक तथ्य किसे मानेंगे? यही मात रिस्टर चंपतरायजी भी कहते है-'If this is not bistory and historical confirmation, I do not know what else would be covered by these term."-(Rishabhadeva p. 66). वैदिक साहित्यमें भर्हन, श्रमण, 'मनु यः वातवसनाः', प्रात्य, महानात्व आदि दान्द्रों द्वारा जैन परम्पराका उल्लेख्न किया गया है। घी काशीप्रसाद जायसवालने लिखा है कि लिच्छयि लोग म्रात्य अथवा अबाह्मण-क्षत्रिय १. "मवंशो जिप्तरागादिदोषस्त्रलोक्यपूजितः । यथास्थितार्थवादी प देवोहन परमेश्वरः ।। A Superior divinity with the Jainas vide Apte's Sanskrit English Dic. p. 55. २. "There is nothing to prove that Parsva was the founder of lainissn. Jain tradition is unanimous in making Rishabha, the first l'irthankara (as its founder) There may be some thing historical in the tradition, which makes him the first Tirthankara." 3. "They are called Vratyas or unbrahmanical Kshatriyas; they had a republican form of Government; they had their own shrines, their non-Vidic worship; their own religious leaders%3; they patroniscd Jainism."--Modern Review. p. 499, 1929,

Loading...

Page Navigation
1 ... 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339