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जैनशासन
दार्शनिक विचारप्रणालोके अनन्त र रूपकयुक्त (allegorical) धार्मिक विचारधारा प्रचलित हुई । मूल तत्त्वकी ओर ध्मान. न रहने से रूपक तथा पौराणिकताने विवाद और तुन्द प्रारंभ कर दिया | वैज्ञानिक समन्वयकारी प्रणाली के प्रकाश में विरोध, असंभाव्यता आदि दोप क्षणमात्रमें नष्ट हो जाते है । वनानिक पद्धतिको अंगीकार करनेवालोंके वंशजोंको आज जैन कहते हैं। जिन्होंने पहले-पहले रूपक पा आलंकारिक पौराणिकताको अपनाया में हिन्दू कह जाते हैं। इस दृष्टिसे जैनधर्म वैदिक धर्मसे पूर्वक्ता सिद्ध होता है।
सिम्धु नदीके सटपर अवस्थित मोहनजोदड़ो एवं हरपा नामक स्थानों में खुदाईके वारा जो आजसे पाँच हजार वर्ष पूर्व को भारतीय समृद्धि, विकास तथा सम्यताको बताने वाली महत्वपूर्ण राबसे प्राचीन सामग्री उपलब्ध हुई है, उभसे भी जैनधर्मकी प्राचीनतापर प्रकाश परता है और यह सूचित होता है कि प्राचीनतम सामग्री जैनधर्म तथा संस्कृति के स्वतंत्र सद्भावको बताती है । जब कि आज विद्यमान संस्कृतियों और धर्मों का नामोनिशान नहीं मिलता, तब भी जन-संस्कृतिका सद्भाव बतानेवाली महत्त्वपूर्ण सामग्री जनधर्म की प्राचीनताको प्रकट करती है।
उक्त खुदाई में उपलब्ध मोल-मुहर नं. ४४९ में डा. प्राणनाथ विद्यालंकारजैसे बैदिक विद्वान जिनेश्वर शब्दका सद्भाव पढ़ते है। रायबहादुर चंबा जैसे महान् पुरातत्त्वज्ञका कथन है कि वहाँकी मोहरोंमें जो मूर्ति पाई जाती है, उसमें मधुराकी ऋषभदेवकी खड्गासन मूतिके समान त्याग अथवा वैराग्यका भाव अंकित है। सील नं० एफ० जी० एच० मे वैराग्य मुद्राके साथ, नीचेके भागमें, ऋषभदेवका सूचक बैलका चिह्व भी पाया जाता है।'
!. Ramprasad Chanda :-"Sindh Five Thousand Years ago"-in
Modern Review August 1932 plate 11 fig. d&p. 159 "the pose of the image (standing Rishabha in Kayotsarga form from Mathura reproduced in fig. 12) closley resembles the pose of the standing deities on the Indus scals. Among the Egy ptian sculptures of the time of the early dynasties (III-VI) there are standing statuettes with arms hanging on two sides ..... But though these Egyptian statues and the archaic Greek Kouri show ucarly the same pose, they lack the feeling of abandonment that characterises the standing figures of the Indus seals three to five (Plate II. F.G. H.) with a bull (1) in the foreground say be the prototype of Rishabha".
-Quoted in the Jain Vidya Vol. 1, no. 1, Lahore.