Book Title: Jain Shasan
Author(s): Sumeruchand Diwakar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 237
________________ इतिहास के प्रकाश में २२९ 'द' अनवा 'दाम' कहा है। आदिनिवासी होनेके कारण उनलोगोंने आयोंके स्वदेशमें प्रवेशका प्रतिरोध किया इसलिये शत्रुओंका निन्दनीय वर्णन यागस आर्यों द्वारा होना अस्वाभाविक नहीं है. कवित 'व का गर्म संस्कृति, वर्ण आदि पृथ था 1 उनका वर्ण श्याम था । वे अग्रण्वन (यज्ञब िविहीन), अकर्मन् (वेदिक क्रियाकाण्ड) प्रदेय (देवोंके विषयमें उदासीन), अन्यद्रय ( भिन्न प्रकारके नियमोंके पालन करनेवाले) तथा देववीयु (देवताओंका तिरस्कार करने वाले कारण मांस आदिको ग्रहण करने वाले कथित देवताओं का सम्मान करना उनको संस्कृति के विपरीत है) थे। वे आपके देवताओं, यज्ञ तथा धार्मिक विचारोंका प्रकट रूपमे निषेध करते थे। उनकी नारिकाकी आकृति आयो की अपेक्षा जुदो यौ | अतः उनको 'समास' कहा है। उन्हें 'बा' (Mridhravac ) कहा है. जो उनकी अस्पष्ट भाषा या विरुद्ध वाणीको सूचित करता था । पुरातत्त्वों के मत में ये ही द्रविड लोग थे । उनका असुन्दर चित्रण देवबुद्धिमवा आम किया है | afe लोगोंकी भाषा संस्कृत न थी। वह भाषा प्राकृत थी, जिसके द्वारा में अपने धार्मिक साहित्यका प्रचार करते थे। यह वामिल नामक द्रविड भाषा के अधिक सन्निकट है । अत्यन्त प्राचीन सामिल साहित्य, विशेषतः 'टोसsuम् (Tolkappium) नामक महत्वपूर्ण प्रथमे उपरोक्त बातोंका समर्थन होता है। इससे यह प्रमाणित होता है कि जनधर्मको प्राचीनताकी जड़ कितनी गहरी हूँ। वह वैदिक धर्मका न तो अंग है, न उनसे प्रभावित है। तुलनात्मक धर्मके विशेषज्ञ विद्यावारिधिको चम्पायनो मेरिस्टरनं अपनी शोषका यह परिणाम प्रकाशित किया है कि धर्म वैज्ञानिक तथा मुख्यवस्थित है। वैज्ञानिक * १. "Religion thell is a science and originated amongst Aryana. Amongst the Aryans it originated with the Jains; not with the non-Jain Aryans. All the chief religious quarrels of men have arisen without exception, through mythology and will end completely, the moment it is thrown away by men. The descendents of former (scientific section) are termed Jainos today; those who allegorised first of all are the Hindus." Kishabhadeva, p. V-XI. 2. "All mythologies as a matter of fact started with the teaching of truth as taught by the Tirthamkaras. From its very nature scientific religion could not have been a hole and corner affair". -Rishabhadeva. p. VI, Refer 'Key of Knowledge & Confluence of Opposites.'

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