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कल्याणपथ
करुणाका भाव अविभक्त रहता है। जहां आत्मीयों के प्रति स्नेह और दूसरोंके प्रति विद्वेषका भाव रहता है, वहां पवित्र महिसाकं सिवाय अन्य भानवाचित सद्गुणोंकी भी मृत्यू हो जाती है। अतएक जीवन में सामजस्य, स्थिरता और सात्विकताको अवस्थिति के लिए करणामूलक प्रवृत्तियोंका जागरण जरूरी है। भोगासकृव्यक्ति Sanctity of knife चाकू के प्रयोग को पवित्र सानता हुआ दया से दूर हो रहा है।
कहते हैं, अमेरिकाके राष्ट्रपति एक समय आवश्यक कार्यसे भव्यभूषायुक्त होकर शाही सवारीपर जा रहे थे, कि मार्ग में एक वराहको पंकमें निमग्न देखा और यह सोचा कि यदि इसकी तत्काल सहायता नहीं की गई, सो यह मर जायगा. अतः करुणापूर्ण हृदयकी प्रेरणासे वे उसी समय कीसदमें घुस गए और उस दुःखी जीवके प्राणोंका रक्षण किया । लोगों ने उनसे पूछा कि ऐसा उन्होंने स्वयं क्यों किया, दूसरेको आशा देकर भी वे यह कार्य कर सकते थे? उन्होंने उत्तर दिया कि उस प्राणीको छटपटाते देख मेरे हृदय में बड़ी वेदना हुई, अतः मैं दूसरेका सहारा लेने के विषयमें विचार तफ न कर सका और तुरन्त प्राण बचाने के कार्य में निरत हो गया । वास्तव में जहां सच्ची अहिंसाकी जागृति होती है, वहां मनुष्य अमनुष्यका भेद नहीं किया जाता है ।
इस करुणाके कार्य से मनुष्यको अनुपम आनन्द प्राप्त होता है। करुणाकी निधिको जगदको कितना ही दो, इससे दातारमें कोई भी कमी नहीं आती, प्रत्युत वह महान् आत्मीक शक्तिका संग्रह करते जाता है । वेदान्तीको भाषामें जैसे सर्वत्र मह्मका वास कहा जाता है, इस शैलीसे यदि सत्य तत्त्वका निरूपण किया जाय,
तो कहना होगा, सर्व उन्नतिकारी प्रवृत्तियों में अहिंसाका अस्तित्व अवश्यंभायी है। __ जितने अंशमें अहिंसा महाविद्या का अधिवास है, उतने अंशमें ही वास्तविक विकास
और सुख है। 'अमृतत्वका कारण अहिंसा है, और हिंसा मृत्यु और सर्वनाशका द्वार है। गीतामें कहा है-कल्याणपुर्ण कार्य करनेवाला दुर्गतिको नहीं प्राप्त करता है। आज कल्याण करने की उपदेशपूर्ण वाणी सर्वत्र सुनी जाती है, किन्तु आवश्यकता है पुण्याचरणको १ पथप्रदर्शक लोग प्रायः असंयम और प्रसारणापूर्ण प्रवृत्ति करते है, इससे उनकी वाणी का जगत्के हृदयपर कोई भी असर नहीं पड़ता है। थी चंपतराय जनमे इसीलिए यह महत्त्वपूर्ण बात लिखी थी, कि "आज कमणा और १. "अमृतन्य हेतुभूत अहिंसा-रसायनम् ।" -अमृतचर सूरि । २. 'न हि फल्याणकृत् कश्चित् दुर्गति तात गच्छति ।" - गीता । . Mercy and pity are altogether unknown or only meant to mask hypocricy and vice under their cloaks."
-Eng. Jain Gaz.