Book Title: Jain Shasan
Author(s): Sumeruchand Diwakar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 337
________________ कल्याणपथ "तुम्हारी सहजीव अपने खंजरसे आपही खुदकुशी करेंगी। जो शास्त्रे नाजुक पे आशियाना बना नापायादार होगा ।।" जिस प्रकार घमंचन के प्रेमी सम्राट अशोकने सत्य, अहिंसा, शील, सदाचार आदि पुण्य प्रवृत्तियोंके प्रचारमे अपने सम्पूर्ण परिवार तथा शासन शक्सिको लगाकर देशमें नूतन जीवन ज्योति जगा दी थी, उसी प्रकार यदि हमारा भारतशासन हिंसाके विश्व युद्ध बोलकर 'दया पर दैवतम् की सर्वत्र प्रतिष्ठा स्थापित करने के उद्योग में लग जाय, तो भारत यथार्थ में अशोक सुखी और अपराजित बनकर जगत्को समृद्ध करने में सच्ची सहायता दे सकता है। महावीर, बुद्ध, राम, कृष्ण, ईसा, भूसा, नानक, जरदस्त आदि प्रमुख भारतीय धर्मोके महापुरुषों के जन्म दिनोंको बेषाम अहिंसा दिवस घोषित कराकर जनतामें सस्प और अहिंसाके पुण्यभाय भरनेका कार्य सहज हो हमारे शासक कर सकते हैं । संपूर्ण विश्वका अहिंसाकी ओर ध्यान खींचने के लिए यादे एक "अंतर्राष्ट्रीय वधुत्व' दिन मनानेका राष्ट्रसंघके द्वारा कार्य किया जाय, तो महज ही कार्य मन सकता है। राष्ट्रसंघका सांस्कृतिक विभाग इस सम्बन्ध महत्त्वपूर्ण सेवा कर सकता है। आज जो आर्थिक संकट है उसके सुधार हेतु किन्हीं की धारणा है, कि औद्योगिक उरकान्ति के कारण जो सम्पत्तिका एक जगह पुंजीकरण प्रारंभ हुआ, उसकी चिकित्सा है संपत्तिको समाजको वस्तु बनाया जाय, ताकि सभी समाम रूपसे उसका लाभ ले सकें। इस प्रक्रिया में अतिरेकवादका दोष विद्यमान है। जमधर्मका अपरिग्रहवाब इसको दवा है । यह ठीक है, कि धन संपन्न वर्गको अपनेको धनका ट्रस्टी सरीखा समन अनावश्यक द्रव्यको लोकहितमें लगाना चाहिए । इसीसे कविने कहा है कि 'महान् पुरुष मेघके समान द्रव्य-जलका संग्रह करके अगत् हितार्थ उसका पुनः परित्याग करते हैं।' जैन आचार्योंने गृहस्थके आवश्यक दैनिक कार्यो में त्यागको परिगणना की है, किन्तु इसका यह अर्थ नहीं है, कि बल के द्वारा किसी के संगृहीत अर्थको समाजको सम्पत्ति मान छीन लिया जाय । द्रव्यमा सम्यक उपयोग न करनेवालोंका उन्मूलन करने के स्थान में उनका समुचित सुघार उचित है। दूसरे पदार्थ प्रायः पर्वतमालाके समाद मनोरम मालूम पड़ते हैं। इसी प्रकार विविध वादोंसे समाकुल रूस आदि देश सुखी और समृद्ध बताए जाते हैं, किन्तु उनके अंतस्तत्त्वसे परिचित लोग कहते हैं, कि वहां आतंकवादका 'मारूवाध' निरन्तर बजता है । रूसमें पांच वर्षतक बन्दी रहनेवाले पोलेण्डके एक उच्च सेनानायनाने 'ग्लोब' के संवाददातासे कोलंबोसे आस्ट्रेलिया जाते समय कहा था, कि रूसकी सरकार यस्तुतः

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