Book Title: Jain Shasan
Author(s): Sumeruchand Diwakar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 339
________________ कल्याणपथ 331 जिस अन्तःकरणमें इस जगत्की क्षणिकता प्रतिष्ठित रहेगी, वह मानव अपथ में प्रवृति नहीं करेगा। ऐसे मात्मवान्' पुरुषाधियोंके सभी काम मंगलमय विश्वनिर्माण में सहायक होते हैं / अस्वस्थ. प्रतारित और पीड़ित मानवताका कल्याण प्राणी मात्र के प्रति धन्धुत्वका व्यवहार और पुण्याचरण करने में है / इसके द्वारा समन्तभद्र संसारका निमणि हो सकता है / महाबीर भगवान् ने कहा है 'धम्म यरह सपा, पावं दूरेण परिहरह। 1. सदा धर्मका पालन करो और पापका पूर्ण परित्याग कसे /

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