Book Title: Jain Shasan
Author(s): Sumeruchand Diwakar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 335
________________ कल्याणपथ जायें, तो काम बन जाय; किन्तु वस्तुस्थितिको दृष्टि पयमें रखते हुए ऐसा नहीं किया जा सकता है। अतएव आजके भोग प्रचुर जगत्को जीवन-नौकाको विपत्तिकी भंवरसे बचाने के लिए अपरिग्रहाद' रा संयत-मनोवृत्ति रूप उज्ज्वल आलोक-स्तंभ (Light House} की आवश्यकता है। परिग्रहको द्धि आत्माको दबाते हुए इस जीवको गतप्राणसा बना देती है। इसीसे आवार्य नेपिचंद्र सिद्धान्त पक्रवर्तीने 'मुच्छा परिगहो' परिग्रहको मूच्र्छा बताया है। लौकिक मूमि बेहोशीके कारण बाह्म घस्तुओंका उचित भाव नहीं रहता है इसी प्रकार हम अलोकिक मूच में बाह्य वस्तुओंका हो भान रहता है, किन्तु नित्य तथा आनंदके सिंधु अपनी बात्माको पूर्णतया विस्मति होती है । आमकी मूठित-मानवताको अपरि_प्रह्वादको संजीवनी सेवन कराना आवश्यक है । अमर्यादित होवन स्तर बढ़ाने क्या कभी भी तृप्सिकी उपलब्धि हो सकी है ? परिग्रहवादके शिखरपर समासीन ___ अमेरिकाक जीवनका सम्यक् परिशीलन करनेवाले विद्वान रा० कुमार स्वामीने लिखा था 'स्नान टच, रेडियो, रिफिजेरेटर नादि मानन्दप्रद पदार्थों की अपेक्षा जीवन विशेष महत्वपूर्ण है ! मुझे तो यह प्रतीत होता है, कि जीवन-स्तर जितना सहा होता है, संस्कृति उतनी ही अल्प होती है । ऐसा कैसे ? पचास प्रतिशतसे अधिक अमेरिकन लोगोंमें ऐसे मिलेंगे, जिन्होंने अपने जीवन में कोई ग्रन्थ हो नहीं खरीदा हो; और उनका ही जीवन-स्तर सारे विश्व में सबसे ऊंचा है। साक्षरता शिक्षा नहीं है और शिक्षा संस्कृति नहीं है । समृद्ध कहे जानेवाले देश बास्तविक शान्ति तथा आनन्दसे वंचित है, अमेरिकामे आधी संख्या अनिद्रा रोगसे पीडित है। आत्मघात बढ़ रहा है। गठिया, बहमूत्रादि रोग प्रवर्धमान है। पेट के अल्सर के मरीज दूसरों एक पाये जाते है। अपराष वृद्धिंगत हो रहे हैं । अमेरिकासे भागत हिप्पी कहते हैं इभ सुखी नहीं हैं। इन वैभवसे पान्ति नहीं मिलती ( Tirthankar Mahavirn : life & Phie losophy) P. A, VII ___t. Life is larger than tath-tubs, radios and refrigerators, I am afraid the higher the standard of living, the lower the culture, Why; more than fifty percent or Americans have never bought a book in their life time and the Americans have the highest standard of living in the world. Literacy is not edication and education is not culture," -Vedanta Keshri Oct. 47, p. 234,

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