Book Title: Jain Shasan
Author(s): Sumeruchand Diwakar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 314
________________ ३०६ जैनशासन 'अरे भाई, आशा-अग्निमें घनरूपी ईन्धन डालकर जलनेके अणमें प्रदीप्त देखते हुए भ्रमयश तुम उसे शान्त हुआ समझते हो।' भगवान् कुन्थुनामने चक्रवर्तीके महान् साम्नाज्यका परित्याग किया था, और वे विषय-मुखसे विमुख हुए थे। इस विषयमें स्वामी समन्तभद्र बड़ी महत्वपूर्ण बात बताते हैं "तृष्पाचिषः परिदहन्ति न शान्तिरासा मिष्टेन्द्रियार्थविभवः परिवृद्धिरेव । स्थित्यैव कायपरितापहरं निमित्तमित्यात्मवान्विषयसौख्पपराङ्मुखोऽभूत् ।।" -वृ० स्वयम्भू० ८२ । "तुष्णाग्नि जीवोंको सदा जलाती है | इन्द्रियोंके प्रिय भोगों के द्वारा इन ज्वालाओंको शान्ति न होकर वृद्धि होती है । मह बात कुन्युनाय स्वामीने अनुभव द्वारा निश्चित की, तब उन्होंने शरीरके संतापका निवारण करने में निमित्त रूप विषय-सुखों के प्रति विमुखवृत्ति अंगीकार की; कारण वे मात्मवान थे ।" आजके अध्यात्म दृष्टि शुन्य देश भोग और विषयोंकी आराधना करने में मग्न है। इसकी पूतिके निमित्त उन्हें कोई भी पाप या अनर्थ करनेमें तनिक भी संकोच नहीं होता । अपने और अपनोंके आरामके लिए घे सारे संसारको भी दुःखफे ज्वालामुस्लीमे भस्म होते देखकर आनन्दित रह सकते हैं । वे यह नही सोचते कि इस अन्धाराषनाका परिणाम कभी भी सुखद नहीं हुआ है । आत्माको संस्कृत बनाना (Soul Cuiture) उन्हें पसन्द नहीं है। उन्हें इसके लिए अवकाश नहीं है । स्व० रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने एक अमेरिकन से कहा था-"पाप लोगों के पास अवकाश नहीं है । कदाचित् है भी, तो आप उसका उचित उपयोग करना नहीं जानते । अपने जीवनकी दौड़में तुम इस वातको सोमने के लिए तनिक भी नहीं रुकते कि, तुम कहीं और किस लिए जा रहे हो। इसका यह फा निकला, कि तुम्हारी उस सत्यदर्शनकी शक्ति चली गई।" कारलाईल जैसा विद्वान् कहता है "Know thyself''-अपनी प्रास्माको जानो 'के स्थान में अब यह बात सोखो "Know thy work and do it"!. Rabindranatha Tagore said to me, "You Americans bave 10 leisure; or if you have, you know not how to use it. In the rush of your lives, you do not stop to consider, where you are rushing to nor whai is it all for. The result is that you have lost the vision of the Eternal." --Vide James Bisset Pratt-India & its Faiths p. 473.

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