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जैनशासन
कल्याणपथ
जबसे भारतने महिमात्मक संग्राम द्वारा स्वातंत्र्य प्राप्त किया है, सबसे सर्वत्र अहिंसाके महत्त्वकी महिमा लाई गाली है । सीमा शिसार अवस्थित जैन विचारखोलीमे जगत् मार्ग-प्रदर्शन प्राप्त करना चाहता है । विश्वके अप्रतिम विद्वान् जाज बर्नाडशा जैन तत्वज्ञानपर अत्यन्त अनुरवत हो गये थे। जैन-अहिंसाके आदेशको शिरोधार्य कर 'शा' महाशय निरामिष भोजीका जीवन व्यतीत करते थे। उन्होंने श्री देवदास गांधीमें कहा था, कि "जैनधर्मके सिद्धान्त मुझे अत्यन्त प्रिय है। मेरी आकांक्षा है, कि मृत्यूके पश्चात् मैं जैन परिवार में जन्म धारण करूं।" जैन विचारोंका गांधीजी के जीवनपर गहरा प्रभाव रहा है। उनकी अहिंसात्मक साधनाके प्रति अपूर्व निष्काको देम्स, पश्चिमके बड़े-बड़े विद्वान् गांधीजीको जनधर्मका अनुयायी मानसे रहे हैं। सी० एफ० एण्ड महाशमने एक बार बताया था, कि जद राष्ट्र के पध-प्रदर्शन में वापुका मार्ग तिमिर-तिरोहित बन जाता था, और वे आत्मप्रकाशके लिए लम्बे-लाचे उपवासोंका माश्रय लेते थे, उस समय व प्राय. जैतशास्त्रों के मम्मक् अनशीलनमें निरत देखे जाते थे, जिसके प्रसादसे वे अपनी अहिंसात्मक साधनाके क्षेत्रमें सफलतापूर्वक उत्तीर्ण होते रहे हैं।
अपने असहयोग-आन्दोलनको भारम्भ करने के कुछ समय पूर्व महावीर जयतीके समारंभका अध्यक्ष बन बापून अन्नमदाबादमें कहा था, "जैनधर्म अपने अहिंसा-सिद्धान्तके कारण विश्व-धर्म होनेके पूर्णतया उपयुक्त है ।" सन् १९४७ एशिया महासम्मेलन के सदस्योंके समक्ष प्रकाण्ड विद्वान् मा कालिदास माग पूर्व मंत्री रायल एशियाटिक सोसाइटी बंगालने बड़े महत्वपूर्ण विचार प्रस्तुत किये
१. "His parents were the followers of the Jain school......p.9;
Before leaving India his mother made him take the three vows of Jain, which prescribe abstention from wine, meat and sexual intercourse. p. 11, Vide "Mahatma Gandhi by Roman Rolland,"
AM. K. Gandhi's mother was under Jain influence"p. 101 vida George Catlin's book on "In the path of Mahatma Gandhi."