Book Title: Jain Shasan
Author(s): Sumeruchand Diwakar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 326
________________ नाता प्रमुख पुरुषोंके ऐसे आंतरिक उद्गारोंसे यह बात स्पष्ट हो जाती है, कि मानवताके परित्राणार्थ भगवती अहिंसाकी प्रशान्त छायाका आश्रय लिए बिना अब कल्याण नहीं है । वास्तविक सुख, शाश्वतिक शान्ति और समृद्धिका उपाय करतापूर्ण प्रवृत्तिका परित्याग करने में है । वैज्ञानिक आविष्कारीक प्रसादस हजारा मीलकी दूरीपर अवस्थित देश अब हमारे गड़ोसी सदृश हो गये है। और हमार सुख-दुःखकी समस्याएं एक दुसरेके सुख-मुःखसे सम्बन्धित और निकटवतिना बनता जा रही हैं 1 एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्रमे पूर्णतया पृथक् रहकर अध अपना अदभुत आलाप छेड़ते नहीं रह सकता है । ऐसी परिस्थिति में हमें सब नल्याणकी,-दूसरे शब्दों में जिसे मायका मागं कहेंगे, और दष्टि देनी होगी। इस सत्रावयम सब जीयोंका सर्वकालीन तथा सर्वांगीण उदय अर्थात विकास विद्यमान होगा। 'सक शब्द का अमिधेय 'जोवमात्र' के स्थान में केवल 'मानव समाज' मानना ऐसा ही संकीर्णता और स्वार्थ भावपूर्ण होगा, जैसा ईसाके 'Thou siait not ki' इस वचनका 'जीववध निषेधके' स्थानमै केवल 'मनुष्य यध निषेध' किया जाना। करीम १७०० वर्ष पूर्व जैनाचार्य समन्तभद्रन भगवान महावीरके अहिंसात्मक शासनको 'सर्वोदय तीर्थ' शब्द द्वारा संकीर्तित किया था। यह मर्वोदय तीर्थ स्ववे अविनाशी होते हुए भी राव विपत्तियोंका विनाशक है । इस अहिंसात्मक तीर्थम अपार सामथ्यका कारण यह है कि उसे अनन्त शक्तिके भण्डार लेजाज आहाका बल प्राप्त होता है; जिसके समक्ष संसारका केन्द्रित पमबल नगण्य बन जाता है । आज क्रूरताका वारुणी पीकर मछित और मरणासन्न संसारको वीतराग प्रकी करुणारस सिक्त संजीवनी के सेवनकी अत्यन्त मायश्यकता है। हिंसात्मक मागस प्राप्त अभ्युदय और समृद्धि वर्षाकालीन क्षुद्र जन्तुओंके जीवन सदश अल्पकाल तक ही टिकती है और शीघ्र ही विनष्ट हो जाती है। करुणामय मा अबलम्ब नसे शीन जयश्री प्राप्त होती है। इस सम्बन्ध में महाकवि शेक्सपियरका यह कथन बड़ा महत्वपूर्ण है कि २'जब किसी साम्राज्यको प्राप्ति के लिए क्रूरतापूर्ण और करुणामय उपायोंका आश्रय लिया जाय, तब ज्ञात होगा, कि माताका मार्ग खीन ही विजय प्रदान कराता है।" इस युग में हम गणनातीत नकली वस्तुओंको देखते है. इसी प्रकार आज यथार्थ दयाके देवताके स्थान में मक्कारीपूर्ण कृत्रिम अहिंसाको देखते हैं, जिसका अन्तःकरण हिंसात्मक, पाप पुंज प्रसारणाओंका कीड़ामल है। एसे अद्भुत १. "सर्वापदामन्तकरं निरन्तं सर्वोदयं तीर्थमिदं तदेव । युक्त्यनुशासन (६२) 2. "When lenity and cruelty play for a kinom, the gentler gamister is the soonest winner-King enry V. Act II, CVI.

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