Book Title: Jain Shasan
Author(s): Sumeruchand Diwakar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 317
________________ विश्वसमस्याएं और जैनधर्म महाकवि वाल्मीकि अपने जीवन के पूर्व भागमें महान लुटेरा डाकू था। एक बार उसकी दृष्टि में उपरोक्त तत्व लाया गया, कि तुम्हारा इपतीसे प्राप्त धन सब कुटुम्बी सानम्म उपभोग करते है, किन्तु वे इस पापमें भागोदार नहीं होंगे; फल तुम्हें ही अकेले भोगना पड़ेगा। वाल्मीकि ने अपने कटुम्बमें जाकर परीक्षण किया, तो उसे ज्ञात हुआ, कि पापका बंटवारा करनेको माल उड़ानेवाले कुटुम्बी लोग तैयार नहीं है। इसने डाकू वाल्मीकिक हृदय-चन्नु खोल दिए और उसने डाकूका जीवन छोड़कर ऐसी सुन्दर जिन्दगी बना ली, कि अबतक जगत रामायणके रचयिताके रूपमे उस महाकविको स्मरण करता है ।। इस युगके साम्राज्यवादी, सिक्रेटर अथवा भिन्न-भिन्न राजनैतिक विचारधारा वालोंको भी यह नग्न सत्य हृदयंगम करना चाहिए, कि आज परिस्थिति अथवा विशेष साधनयश उनके हाथमें सत्ता है, बल है और इससे वे मनमाने हरमें शिकारीके समान दीन-होन, अशिक्षित अथवा असभ्य कहे जानेवाले मनुष्योंकी स्वतंत्रताका अपहरण करें, उनका धन अपहरण करें तथा उमको संस्कृतिको चौपट करें; किन्तु इन अनधोका दुष्परिणाम भोगना ही पड़ेगा। प्रकृतिका वह अबाधित नियम, 'at you sow, so you reap-जैसा बोओ, तैसा काटो' इस विषयमें तनिक भी रियायत न करेगा | कथित ईश्वरका हस्तक्षेप भी पापपसे न बचावेगा। वैज्ञानिक धर्म तो यही शिक्षा देता है, कि अपने भाग्यनिर्माणको शक्ति तुम्हारे हो हापमें है, अन्यका विश्वास करना भ्रमपूर्ण है । अभी तो राजनैतिक जगतके विधातागण अपने आपको सांस्य के पुरुष समान पवित्र समानते है और यह भी सोचते है, कि अपने राष्ट्रहिसके लिए जो कुछ भी कार्य करते हैं वह दोष उनसे लिप्त नहीं होता । जैसे प्रकृतिका किया गया समस्त कार्य पुरुषको बाधा नही पहुँचाता । यह महान् भ्रमजाल है। कर्तृत्व और मोक्सृत्य पृथक्पृषक नहीं है । कारण भुक्ति-क्रियाकतव हो तो भोक्तृत्व है । अगत्का अनुभव भी इस बातका समर्थन करता है 1 अनशासन सबको पुरुषार्थ और आत्मनिर्भरताकी पवित्र शिक्षा देता हुआ समझाता है, कि यदि तुमने दूसरों के साथ न्याय तथा उचित व्यवहार किया, तो इस पुण्याचरणसे तुम्हें विशेष शान्ति तथा आनन्द प्राप्त होगा । यदि तुमने दूसरोंके न्यायोचित स्वत्वोंका अपहरण किया, प्रभुताके मदमें आकर असमर्थों को पादाक्रान्त किया, तो तुम्हारा आगामी जीवन विपत्ति की घटासे घिरा हुआ रहेगा। इस आत्मनिर्भरताकी शिक्षाका प्रचार होना आवश्यक है । पदि प्रभुताके मद-मत्त व्यक्तिको समझमें यह आ गया, कि पशु-जगतुके नियमोंका हमें स्वागत

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